मेजर विवक गुप्ता का जन्म २ जनवरी, सन १९७० को उत्तराखंड के देहरादून में हुआ था। उनके पिता कर्नल बी.आर.एस. गुप्ता भी भारतीय सेना में थे। सेना की पृष्ठभूमि वाले मेजर विवेक गुप्ता की स्कूली शिक्षा आर्मी पब्लिक स्कूल, धौलाकुंआ, नई दिल्ली में १९८७ में हुई। ऊर्जावान व्यक्तित्व, जोश और उत्साह से लवरेज विवेक गुप्ता जून १९८८ में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए। १३ जून १०९२ को एक यंग सैकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सैन्य अकादमी पास की। इसके बाद उन्हें दो राजपूताना राइफल्स में शामिल किया गया और पोस्टिंग मिली। मेजर विवेक गुप्ता ने कमीशन लेने के ठीक पांच साल बाद यानी १३ जून १९९९ को अपने जीवन को देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए बलिदान कर दिया।
ऑपरेशन विजय…
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने सामरिक द्ष्टि से सबसे महत्वपूर्ण चोटी तोलोलिंग पर कब्जा कर लिया था। लिहाजा अब भारतीय सेना के समक्ष इस चोटी को दुश्मन सेना के कब्जे से मुक्त कराने का पहला लक्ष्य था। कमान अधिकारी ने मेजर विवेक गुप्ता को तोलोलिंग पहाड़ियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर करने और चोटी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी। सैन्य नजरिए से यह काम बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मेजर विवेक गुप्ता और उनके साथियों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया। १२ जून, १९९९ को मेजर विवेक गुप्ता ने तोलोलिंग चोटी को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कराने के दौरान जो जांबाजी दिखाई, उससे दुश्मन के दांत खट्टे हो गए। मेजर गुप्ता और बटालियन ने अभूतपूर्व साहस और जांबाजी दिखाते हुए उस पहाड़ी से घुसपैठियों को भागने पर मजबूर कर दिया।
राजपुताना राइफल्स के मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में १२ जून की रात को तोलोलिंग चोटी पर विजय करने के लिए कंपनी रवाना हुईं। मेजर विवेक का पाकिस्तानी सेना से आमना-सामना हुआ। ऊंचाई पर बैठे दुश्मन सेना ने मेजर गुप्ता और उनकी टीम पर गोलियों बरसाना शुरू कर दिया, जिसमें मेजर गुप्ता को दो गोलियां लगीं, परंतु गोलियाँ लगने के बावजूद घायल अवस्था में भी मेजर गुप्ता ने तीन पाकिस्तानियों को ढेर कर बंकर पर कब्जा कर लिया। बंकर पर कब्ज़ा करने के बाद मेजर विवेक गुप्ता ने वहां पर तिरंगा लहराया। १३ जून को इस बेहद चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को हासिल कर लिया गया। हालांकि इस बीच मेजर विवेक गुप्ता गोली लगने के कारण गंभीर रूप से घायल हो चुके थे, परंतु घायल अवस्था के बावजूद भी वो अपनी अंतिम सांस तक दुश्मनों से लोहा लेते रहे। उनके सैन्य कैशल के चलते कई दुश्मन मारे गए और बड़ा क्षेत्र भारतीय सेना के कब्जे में आ गया। अंत में माँ भारती की रक्षा करते हुए मेजर विवेक गुप्ता वीरगति को प्राप्त हो गए।
महावीर चक्र…
रणक्षेत्र में महान पराक्रम और असाधारण वीरता दिखाने के लिए मेजर विवेक गुप्ता को मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
साल १९९९ में भारत-पाकिस्तान के बीच जब कारगिल युद्ध चल रहा था, उन्हीं दिनों क्रिकेट वर्ल्ड कप भी चल रहा था। समाचार पत्रों और टेलीविजन पर जब कारगिल युद्ध के मैदान में बलिदान हुए देश के वीर-सपूतों की बहादुरी की ख़बरें आतीं तो लोग भावुक हो जाते और आंसुओं का सैलाब आ जाता। देश की आम जनता के साथ-साथ फिल्मी कलाकारों और क्रिकेटरों में भी शहीदों को लेकर भावनाएं उमड़ रहीं थीं। इसी दौरान समाचार पत्रों में एक ऐसी तस्वीर छपी, जिसको देखने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान कपिल देव अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए। वो तस्वीर थी मेजर विवेक गुप्ता के बलिदान की। कपिल देव को पाकिस्तान की इस हरकत पर ऐसा गुस्सा आया कि उन्होंने भारत सरकार से कहा कि ‘बहुत हुआ, अब बंद करो पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना, नहीं चाहिए हमें पाकिस्तान से खेल की कमाई।’
मेजर विवक गुप्ता का जब पार्थिव शरीर दिल्ली पहुंचा तो उनके अंतिम दर्शनों के लिए आम लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। हर कोई अपने नायक का अंतिम दर्शन कर उन्हें नमन करना चाहता था। बारी-बारी से सभी ने उन्हें श्रद्धांजिल दी। मेजर विवेक गुप्ता की पत्नी कैप्टन जयश्री भी सेना की ड्रेस में वहां पहुंचीं और अपने अमर बलिदानी पति को सेल्यूट किया। इस घटना को कपिल देव भी ने भी देखा। जैसे ही कैप्टन जयश्री ने सैन्य धुन पर सलामी दी, कपिल देव टीवी के सामने खड़े हो गए और रोने लगे। ये दोनों तस्वीरें जब मीडिया में प्रसारित और प्रकाशित हुईं तो देश में उबाल आ गया था।