May 6, 2024

सुकुमार सेन का जन्म २ जनवरी, सन १८९८ को बंगाल में हुआ था। वह गणित में गोल्ड मेडलिस्ट थे। सुकुमार सेन ने लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए जाने से पहले कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की। महज २२ साल की उम्र में वह सिविल सेवा सर्विस में तैनात हो गए। यह १९२१ की बात है। तब भारत गुलामी की बेड़ियों से जकड़ा हुआ था। अपनी सेवा के दौरान सुकुमार सेन ने भारत के कई राज्यों और जिलों में काम किया। अपनी तेज-तर्रारी और गजब की मेधा की वजह से १९४७ में सुकुमार सेन को पश्चिम बंगाल का प्रमुख शासन सचिव बनाया गया, जो कि ब्रिटिश भारत में आईसीएस अधिकारी की सबसे वरिष्ठ रेंक थी।

१५ अगस्त, १९४७ को आजादी मिलने के बाद भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि चुनाव प्रणाली का ढांचा कैसा हो? इस चुनौती का हल निकालने वाले थे भारतीय सिविल सेवा के सुकुमार सेन। उनकी बदौलत ही भारत का पहला आम चुनाव संपन्न हुआ था। सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे, जिन्होंने २५ अक्टूबर, १९५१ से लेकर फ़रवरी, १९५२ के बीच पहला आम चुनाव संपन्न करवाया था। उन्हीं की बदौलत ६७ साल पहले भारत के नागरिक पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर पाए। उनकी इस ख्याति से प्रभावित होकर सूडान ने भी उन्हें अपने यहां चुनाव करवाने के लिए बुलाया था। कहा जाता है कि सुकुमार सेन की ही बदौलत भारत के दूसरे आम चुनाव में साढ़े चार करोड़ की बचत हो सकी।

 

लोकसभा चुनाव (१९५२)

१९५२ में भारत के पहले आम चुनावों के दौरान सुदूर पहाड़ी गाँवों तक चुनाव प्रक्रिया को पहुँचाने के लिए नदियों के ऊपर विशेष रूप से पुल बनवाए जाने पड़े। हिंद महासागर के छोटे-छोटे टापुओं तक मतदान सामग्री पहुँचाने के लिए नौसेना के जलयानों का सहारा लेना पड़ा। लेकिन एक दूसरी अन्य समस्या भी थी जो भौगोलिक कम और सामाजिक ज्यादा थी। उत्तर भारत की ज्यादातर महिलाओं ने संकोचकवश मतदाता सूची में अपना खुद का नाम न लिखाकर, अमुक की पत्नी या फलाँ की माँ इत्यादि लिखा दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन इस बात से ख़ासे नाराज थे। उनके विचार में यह प्रथा ‘अतीत का एक अजीबोगरीब और मूर्खतापूर्ण अवशेष’ था। उन्होंने चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे मतदाता सूची में सुधार करें और ऐसे ‘मतदाताओं के महज़ कौटुंबिक व्याख्या’ के स्थान पर उनका स्वयं का नाम अंकित करें। इसके बावजूद क़रीब २८ लाख से ज्यादा महिला मतदाताओं का नाम सूची से बाहर करना पड़ा। उनके नामों को हटाने से जो हंगामा खड़ा हुआ उसके बारे में सेन की राय थी कि यह अच्छा ही हुआ। इस विवाद से लोगों में जागरूकता आएगी और अगले चुनावों तक उनका यह पूर्वाग्रह दूर हो जाएगा। उस समय तक महिलाएँ अपने खुद के नामों के साथ मतदाता सूची में अंकित हो चुकी होंगी।

 

लोकसभा चुनाव (१९५७)

भारत में लोकतंत्र सफलता से अपने पैर पसार चुका है। वैसे एक हकीकत ये भी है कि देश में हुए दूसरे चुनावों के एक बड़े हीरो थे मुख्य निर्वाचन कमिश्नर सुकुमार सेन। जिन्होंने पहले चुनाव को सफलता पूर्वक कराया तो दूसरे चुनाव में देश के करोड़ों रुपये बचा लिए। वहीं दूसरे आम चुनाव में पहली बार कांग्रेस के वर्चस्व को झटका लगा। केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने राज्य की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया। इसी चुनाव में तमिलनाडु में डीएमके का जन्म हुआ यानी पहली बार देश के भीतर अलग तमिल राष्ट्र की भावना का जन्म। हालांकि डीएमके ने चुनाव में बहुत अच्छा परिणाम नहीं कर पाया, लेकिन केंद्र के लिए ये एक खतरे की घंटी थी। इस चुनाव की भी सारी जिम्मेदारी मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन के कंधों पर थी। सेन ने पहले चुनाव के बाद क़रीब पैंतीस लाख बैलेट बॉक्स को अच्छी तरह से बंद करके रखवा दिया था। एक बार फिर उन बैलेट बॉक्सेस को निकाला गया और दूसरे चुनाव में भी इस्तेमाल किया गया। जिससे दूसरे चुनाव में साढ़े चार करोड़ रुपये कम खर्च हुए। दरअसल १९५७ के आम चुनाव में ४१९ लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। इसमें कांग्रेस को ३७१ सीटों पर सफलता हासिल हुई। अबतक के दोनों चुनाव पार्टी के लिए बहुत ही अच्छे रहे, लेकिन अगला चुनाव कांग्रेस और नेहरू के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला था। क्योंकि एक तो स्वतंत्रता आंदोलन की खुमारी उतर चुकी थी और दूसरा कांग्रेस के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे थे।

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