भारत का पहला क्रांतिकारी
जो बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की
३४वीं रेजीमेण्ट में सिपाही था ।
नाम…. मंगल पाण्डेय
ग्राम … नगवा (बलिया)
जन्म …१९ जुलाई १८२७
मेरे लिये मंगल पान्डेय एक विचार हैं,
और आप के लिये ?? ? ?
शायद विचार ही होगा …
ऐसा क्या हूवा जो वो विचार बन गये ।
आज के लिये प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगे …
जब जीवन में दोराहे की स्थिती बनती हो और यह निश्चित कर पाना मुश्किल हो जाये की जो परिस्थति अभी है उसे ही अपना नियती मान लें और चूप रहें या विरोध करके मिट जायें और अपने जमीर को जिंदा रखें ।
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में १९ जुलाई, १८२७ को एक सामान्य सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में मंगल पान्डेय का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। बाढ़ की मार और घर की परिस्थति ने मंगल को सरकारी नौकरी करने पर मजबूर कर दिया मगर स्वाभिमान को उन्होंने कभी नहीं बेचा ।
और इसी का परिणाम था,
स्वाधीनता संग्राम की शुरुवात…
विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।
मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा औऱ रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया।
मगर उनका यह प्रयास विफल हो गया …
औऱ इस प्रयास में वे घायल हुये। ६ अप्रैल १८५७ को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और ८ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
लेकिन क्या यह प्रयास विफल हूवा ? ? ? ?
१९ जुलाई १८२७ का जन्म … आज के परिवेश को देखते हुवे बेकार गया या सार्थक रहा ? ? ? ?