आज हम बात करने वाले हैं, संस्कृत, फ़ारसी, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता व भारतीय वांङ्मय की खोज कर अवधि भाषा में पाठकों के लिए उपलब्ध कराने वाले वाडिया इंस्टीट्यूट’ के निदेशक एवं संपादक श्री राजेन्द्रलाल मित्रा के बारे में…
परिचय…
राजेन्द्रलाल मित्रा का जन्म १६ फरवरी, १८२२ को कोलकाता में हुआ था। १५ वर्ष की आयु में वे मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए, परंतु चार वर्ष की पढ़ाई में अपनी योग्यता से बड़ी ख्याति प्राप्त करने के बावजूद, किन्हीं कारणों से डिग्री हासिल नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई आरंभ की, परंतु हाय री किस्मत यहां भी वही हाल। परिक्षा से पूर्व ही पर्चे आउट हो जाने की सूचना के कारण यहां भी परीक्षा नहीं हो सकी। लेकिन उन्होंने अपने स्वयं की मेहनत की बदौलत संस्कृत, फ़ारसी, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं में दक्षता-प्राप्त की और वर्ष १८४९ में प्रसिद्ध संस्था ‘एशियाटिक सोसायटी’ के सहायक मंत्री बन गए। यहां पर पुस्तकों और पांड्डलिपियों का भंडार इनके अध्ययन के लिए खुल गया। १० वर्ष सोसायटी में रहने के बाद २५ वर्ष तक वे ‘वाडिया इंस्टीट्यूट’ के निदेशक रहे। फिर भी सोसायटी से इनका संपर्क बना रहा।
लेखन…
श्री राजेन्द्रलाल मित्रा जी ने अपनी जीवन की पूरी अवधि में भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगा दिए। इन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। इनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ हैं…
१. छांदोग्य उपनिषद
२. तैत्तरीय ब्राह्मण और आरण्यक
३. गोपथ ब्राह्मण
४. ऐतरेय आरण्यक
५. पातंजलि का योगसूत्र
६. अग्निपुराण
७. वायुपुराण
८. बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तार
९. अष्टसहसिक
१०. उड़ीसा का पुरातत्व
११. बोध गया
१२. शाक्य मुनि
सम्पादन…
श्री राजेन्द्रलाल मित्रा जी ने अनेक संस्थाओं के सम्मानित सदस्य थे। वर्ष १८८५ में ये ‘एशियाटिक सोसायटी’ के अध्यक्ष रहे। वर्ष १८८६ की कोलकाता कांग्रेस में इन्होंने अपने विचार प्रकट किए थे। ‘विविधार्थ’ और ‘रहस्य संदर्भ’ नामक पत्रों का संपादन किया।
अंत में…
राजेन्द्रलाल जी निष्ठावान बुद्धिजीवी और सच्चे अर्थों में इतिहास वेत्ता थे। इनका कहना था, “यदि राष्ट्रप्रेम का यह अर्थ लिया जाए कि हमारे अतीत का अच्छा या बुरा जो कुछ है, उससे हमें प्रेम करना चाहिए, तो ऐसी राष्ट्रभक्ति को मैं दूर से ही प्रणाम करता हूँ।” अपनी योग्यता के कारण सरकार से पहले ‘रायबहादुर’ और वर्ष १८८८ में ‘राजा’ की उपाधि प्राप्त करने वाले श्री राजेन्द्रलाल मित्रा का निधन २७ जुलाई, १८८१ को हुआ।