December 4, 2024

आज हम बात करेंगे संविधान निर्माता भीमराव आम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई आंबेडकर के बारे में, जो इतने बड़े नाम से जुड़ीं दिखाई तो पड़ती हैं मगर किस्मत ने उन्हें सिर्फ दुख देखने के लिए चुना था अतः उन्होंने उसे खुद में समेटे हुए ही २७ मई, १९३५ को मात्र ३७ वर्ष की अल्प आयु में ही इस संसार को छोड़ दिया।

रमाबाई का जन्म ०७ फरवरी, १८९८ को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिला अंतर्गत वणंद नामक गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भिकु धुत्रे (वलंगकर) व माता जी का नाम रुक्मिणी था। रमाबाई के अलावा उनकी और २ बहनें व एक भाई शंकर था। रमाबाई से एक बहन बड़ी थी जो दापोली में रहती थी। रमाबाई के पिता भिकु दाभोल बंदरगाह पर मछलियों की ढुलाई करने वाले दैनिक मजदूर थे, जो मछलियों से भरी हुई टोपलिया बाजार तक पहुंचाते थे। उन्हें हृदय रोग था मगर परिवार को पालना भी उन्हीं की जिम्मेदारी थी। रमा जब छोटी थी तब ही उनकी माता का बिमारी से निधन हो गया था। माता के निधन के आघात से अभी छोटी बच्ची रमा सही ढंग से उबर भी नहीं पाई थी कि कुछ दिनों बाद उनके पिता भिकु का भी निधन हो गया। अपने दोनो छोटे भाई बहनों के साथ रमा बिल्कुल अकेली रह गई। मगर समय किसी के लिए नहीं रुकता और ना ही उसे किसी की परवाह होती है, वह अपने सामान्य गति से चलता रहता है अतः वो चलता रहा। रमा को भी सहारा मिला अपने चाचा वलंगकर एवम मामा गोविंदपुरकर का। वे इन बच्चों को लेकर बंबई चले गये और वहां के एक चाळ भायखला में रहने लगे। अब यहां हम थोड़ी देर के लिए रमा की कथा को विश्राम देते हैं।

भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत रामजी सकपाल सूबेदार के पद पर पहुंच सेवानिवृत हो गए तो वे पुरे परिवार के साथ बंबई चले आये। सूबेदार साहब के पुत्र की उम्र लगभग १५ वर्ष की रही होगी तो वधू की तलाश करने लगे। वहीं उन्हे रमाबाई का पता चला, वे रमा को देखने गये। रमा उन्हें पसंद आई और उन्होंने रमा के साथ अपने पुत्र भीमराव की शादी कराने का फैसला कर लिया। विवाह के लिए तारिख सुनिश्चित कि गई और अप्रैल १९०६ में रमाबाई का विवाह भीमराव आंबेडकर से सपन्न हो गया। विवाह के समय रमा की आयु महज ९ वर्ष एवं भीमराव की आयु १५ वर्ष थी और वे ५वी में पढ रहे थे। उन दिनों भारत में बाल-विवाह का प्रचलन था।

रमा ने अपने पति को पहली बार भिवा के रूप में देखा था, जो कुछ वर्षो बाद भीमराव के रूप में जाने जाने लगे एवम कालांतर में बाबा साहेब आंबेडकर के नाम से प्रतिष्ठित हो गए। मगर अनपढ़ गंवार रमा बस रमाबाई अंबेडकर ही बन पाई। उन्हें भीमराव अंबेडकर की सामाजिक क्रांति से कभी लगाव नहीं था। उन्होंने भीमराव को अपने जीतेजी धर्म परिवर्तन नहीं करने दिया। ३७ वर्ष की अल्प आयु में जब रमाबाई २७ मई, १९३५ को बाबा साहेब को अकेला छोड़ अनंत के सफर पर निकल गई तो १३ अक्टूबर, १९३५ को नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन के दौरान बाबा साहेब आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा यह करते हुए कर दी, “हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा!” जिसका जवाब रमाबाई उन्हें मरने से पूर्व कई बार दे चुकीं थीं, “आप आज जो भी हैं उसकी इज्जत आप क्यों नहीं करते, आपको इसी ने इतना कुछ दिया है। अंधेरे की दौड़ कभी समाप्त नहीं होती, संभल जाएं।” मगर….

रमाबाई से भीमराव आम्बेडकर को एक ही पुत्र यशवंत आंबेडकर हैं और यही उनकी नाम को आगे ले जाने वाले वंश रेखा के वाहक भी हैं (उनके अन्य चार बच्चो की मृत्यू बचपन में ही हो गई थी)।

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