“मॉडर्न रिव्यू” कलकत्ता में प्रकाशित एक मासिक पत्रिका का नाम था। १९०७ से प्रयाग, उत्तर प्रदेश से अंग्रेजी में प्रकाशित यह पत्रिका भारतीय राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में उभरा था। यही वह पत्रिका थी जिसने सर्वप्रथम गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को अंग्रेजी जगत् के सम्मुख प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं सर यदुनाथ सरकार और मेजर वामनदास वसु के ऐतिहासिक शोध विषयक लेख ‘माडर्न रिव्यू’ में ही छपे।
अब आप विचार कर रहे होंगे की यह कैसी गफलत? ? ? एक तरफ यह पत्रिका कलकत्ता से प्रकाशित होती थी तो दूसरी ओर प्रयाग से….! ! !
जैसे ही आप पूरी कथा को जानेंगे बात खुद ब खुद समझ जाएंगे।
श्री रामानंद चट्टोपाध्याय जी ‘मॉडर्न रिव्यू’ के संस्थापक, संपादक एवं मालिक थे। जिनका जन्म सन् २९ मई १८६५ में बंगाल के बाँकुड़ा जिले के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद रामानन्द जी कोलकात्ता के सिटी कालेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हो गए। जहां वे केशवचंद्र सेन के संपर्क में आए और ब्रह्मसमाजी हो गए। उसके बाद कायस्थ पाठशाला इलाहाबाद में प्रिंसिपल हुए। इसी कालेज से ‘कायस्थ समाचार’ नामक एक उर्दू पत्र प्रकाशित होता था जीसका संपादनभार रामानंद बाबू पर आ गया। इसके बाद तो उस पत्र का रूप ही बदल गया, उर्दू के स्थान पर उन्होंने उसे अंग्रेजी का पत्र बना दिया तथा उसका उद्देश्य शिक्षाप्रचार रखा।
कुछ समय के बाद उन्होंने इंडियन प्रेस के चिंतामणि घोष के सहयोग से ‘प्रवासी’ बंगला मासिक पत्र निकालना शुरू किया। यही वह समय था जब मतभेद के कारण उन्होंने कालेज से इस्तीफा दे दिया और कोलकात्ता वापस आ गए।
बंगाल विभाजन के समय देश की राजनीतिक जागृति से वे अपने आप को अलग न रख सके। अतएव १९०७ में पुन: प्रयाग आकर ‘माडर्न रिव्यू’ प्रकाशित करने लगे।
‘मार्डन रिव्यू’ की गिनती उस समय पूरे विश्व में आधे दर्जन श्रेष्ठ पत्रों में की जाती थी यानी टॉप छः पत्रों में। रामानंद बाबू की शैली तेजयुक्त, प्रवाहपूर्ण और निर्लिप्त थी। ‘माडर्न रिव्यू’ के कुछ अंकों ने ही देश विदेश में अपना प्रभाव फैला लिया। उनके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर तथा उनकी आलाचनाओं से विचलित होकर यू.पी. सरकार ने उन्हें तुरंत प्रांत छोड़ने का आदेश दिया अत: वे पुन: कोलकात्ता वापस आ गए। भारत के साथ ही पूरे विश्व के प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय लेखक ‘माडर्न रिव्यू’ में लेख लिखने में अपना गौरव मानते थे।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की सबसे पहली अंग्रेजी रचना ‘माडर्न रिव्यू’ में ही प्रकाशित हुई थी। १९२६ में राष्ट्रसंघ (लीग ऑव नेशन्स) की बैठक में उपस्थित होने के लिए उन्हें आमंत्रित किए गए। इस बैठक में वे अपने ही खर्च से गए। सरकारी खर्च से यात्रा करना इसीलिए अस्वीकार कर दिया ताकि उनके स्पष्ट और निर्भीक विचारों पर किसी प्रकार भी आर्थिक दबाव की आँच न आने पाए।
अमरीका के पादरी जे.टी.संडरलैंड की पुस्तक ‘इंडिया इन बॉण्डेज’ को उन्होंने ‘माडर्न रिव्यू’ में धारावाहिक रूप में और बाद में ‘प्रवासी’ प्रेस से पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। यह पुस्तक जब्त कर ली गई और रामानंद बाबू को पुस्तक के प्रकाशन के लिए दंडित भी होना पड़ा।
रामानंद बाबू हिन्दी भाषी नहीं थे फिर भी वे इसके व्यापकता से अनभिज्ञ भी नहीं थे। उन्हें अनुभव हुआ कि बिना हिन्दी के आश्रय में गए उनका उद्देश्य अपूर्ण रह जाएगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने हिंदी मासिक ‘विशाल भारत’ निकालना शुरू किया। ‘विशाल भारत’ में प्रवासी भारतीयों की समस्या पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा।
श्री रामानंद चटोपाध्याय जी को भारतीय पत्रकारिता का जनक माना जाता है। वे कुशल पत्रकार और लेखक ही नहीं वरन् सच्चे देशभक्त एवं समाजसुधारक भी थे।
ऐसे महान समाजसेवी, देशभक्त पत्रकार के जन्मदिवस पर अश्विनी राय ‘अरुण’ उन्हें शत शत नमन करता है।
धन्यवाद !