आज अयोध्या में राम मंदिर अनंत आंखो द्वारा देखे गए स्वप्न के हकीकत के अंतिम स्वरूप में है। बनते बिगड़ते हालात से जूझते यह इस मुकाम पर कैसे पहुंचा है, क्या यह बात पुरे विश्व में किसी से छुपा है ? नहीं ना! जिस वक़्त देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपने सबसे बड़े फैसले में अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना तब सारे सनातन संस्कृति का सीना गर्व से चौड़ा, सर स्वाभिमान से ऊंचा एवं आस्था से झुक गया। ऐसा नहीं कि यह सिर्फ हिन्दुओं के गर्व कि बात थी इस फ़ैसले में मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया गया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की विशेष बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है। इन पांच जजों के नाम इस प्रकार हैं, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर। पांचों जजों ने लिफाफे में बंद फैसले की कॉपी पर दस्तखत किए और इसके बाद जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ कर सुना दिया।
आइए आज हम इन्हीं इतिहास पुरुष रंजन गोगोई के बारे में जानते हैं, जिनका जन्म १८ नवम्बर, १९५४ को असम के डिब्रूगढ़ में हुआ था। उनके पिता केशब चंद्र गोगोई वर्ष १९८२ में असम राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके है।
करियर…
श्री गोगोई ने वर्ष १९७८ में बार काउंसिल में दाखिला लिया और गुवाहाटी उच्च न्यायालय में अभ्यास करने लगे, जहाँ वे २८ फरवरी, २००१ को स्थायी न्यायाधीश बने। ९ सितंबर, २०१० को उनका स्थांतरण पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में हो गया और फिर १२ फरवरी, २०११ को वे वहां के मुख्य न्यायाधीश बने। २३ अप्रैल, २०१२ को वे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए। और फिर अंत में वो दिन भी आया जब ३ अक्टूबर, २०१८ को, दीपक मिश्रा के निवृत्ति के बाद उन्होंने भारत के ४६वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली।
वे भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले पूर्वोत्तर भारत के पहले व्यक्ति और पहले असमी हैं। इनका कार्यकाल १७ नबंवर, २०१९ को समाप्त हो गया। तत्पश्चात इन्होंने दिनांक १९ मार्च, २०२० को राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ ली।