किसी समय की बात है, उन दिनों चेन्नई का नाम मद्रास हुआ करता था। मद्रास में समुद्र के किनारे एक सज्जन जिनके चेहरे पर तेज चमक रहा था, वे धोती कुर्ता धारण किए हुए श्रीम्भगवद्गीता पढ़ रहे थे। उसी समय एक नवयुवक वहां आया और सज्जन से बोला कि आज भी जब विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है, आप लोग ऐसी किताबों को पढ़ते हैं। देखिए जमाना चांद पर पहुंच गया है और आप लोग गीता, रामायण आदि पर ही अटके हुए हैं।
सज्जन ने लड़के से पूछा की “तुम गीता के बारे में क्या जानते हो?”
वह लड़का पूरे जोश में था अतः अकड़ कर बोला, “बकवास! मैं विक्रम साराभाई रिसर्च संस्थान का छात्र हूँ। I’m a scientist…गीता तो बकवास है हमारे आगे।”
सज्जन हंसने लगे और अभी कुछ कहते तभी दो गाड़ियाँ वहां आकर रुकीं। एक गाड़ी से ब्लैक कैट कमांडो निकले और एक गाड़ी से सिर्फ एक सैनिक। सैनिक ने पीछे का दरवाजा खोला तो वे सज्जन मुस्कुराते हुए चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गए।लड़का यह देखकर हक्का बक्का था। उसने दौड़कर उनसे पूछा, “सर आप कौन है??”
जानते हैं क्या जवाब मिला… तुम जिस विक्रम साराभाई रिसर्च इंस्टीट्यूट में पढ़ते हो मैं वही विक्रम साराभाई हूँ।
ये वही विक्रम अंबालाल साराभाई हैं, जो भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। जिन्होंने ८६ वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं ४० संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में वर्ष १९६६ में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। आइए आज हम इनके बारे में बात करते हैं….
परिचय…
डॉ॰ विक्रम साराभाई का जन्म अहमदाबाद में १२ अगस्त, १९१९ को एक समृद्ध जैन परिवार में जन्म हुआ था। उनके पैत्रिक घर का नाम “द रिट्रीट” था, जहां उनका बचपन गुजरा था। समृद्ध घराने का असर उनपर पड़ा क्यूंकि उस समय उनके घर पर सभी क्षेत्रों से जुड़े महत्वपूर्ण लोग आया करते थे। उनके पिताजी का नाम श्री अम्बालाल साराभाई और माता का नाम श्रीमती सरला साराभाई था। विक्रम साराभाई की प्रारम्भिक शिक्षा उनकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम मारिया मोन्टेसरी की तरह शुरू किए गए पारिवारिक स्कूल में हुई। गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे १९३७ में कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) चले गए जहां १९४० में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे जहां वह महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन के निरीक्षण में ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसन्धान करने लगे।
उन्होंने अपना पहला अनुसन्धान लेख “टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़” भारतीय विज्ञान अकादमी की कार्यविवरणिका में प्रकाशित किया। वर्ष १९४०-४५ की अवधि के दौरान कॉस्मिक रेज़ पर साराभाई के अनुसंधान कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉस्मिक रेज़ के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैम्ब्रिज लौट गए। १९४७ में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक रे पर अपने शोधग्रंथ के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे भारत लौट आए और यहां आ कर उन्होंने कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया।
सपने सच होते हैं…
फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक पीएरे क्यूरी जिन्होंने अपनी पत्नी मैरी क्यूरी के साथ मिलकर पोलोनियम और रेडियम का आविष्कार किया था, के अनुसार डॉ॰ साराभाई का उद्देश्य जीवन को स्वप्न बनाना और उस स्वप्न को वास्तविक रूप देना था। इसके अलावा डॉ॰ साराभाई ने अन्य अनेक लोगों को स्वप्न देखना और उस स्वप्न को वास्तविक बनाने के लिए काम करना सिखाया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता इसका प्रमाण है। इसीलिए तो कहते हैं कि डॉ॰ साराभाई एक स्वप्नद्रष्टा थे।
उनमें अर्थशास्त्र और प्रबन्ध कौशल की अद्वितीय सूझ थी। उन्होंने किसी समस्या को कभी कम कर के नहीं आंका। उनका अधिक समय उनकी अनुसन्धान गतिविधियों में गुजरा और उन्होंने अपनी असामयिक मृत्युपर्यन्त अनुसन्धान का निरीक्षण करना जारी रखा। उनके निरीक्षण में १९ लोगों ने अपनी डाक्ट्रेट का कार्य सम्पन्न किया। डॉ॰ साराभाई ने स्वतन्त्र रूप से और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय पत्रिकाओं में ८६ अनुसन्धान लेख लिखे। इसीलिए तो कहते हैं कि डॉ॰ साराभाई में एक प्रवर्तक वैज्ञानिक, भविष्य द्रष्टा, औद्योगिक प्रबंधक और देश के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए संस्थाओं के परिकाल्पनिक निर्माता का अद्भुत संयोजन था।
कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर या हीन भावना के डॉ॰ साराभाई से मिल सकता था, फिर चाहे संगठन में उसका कोई भी पद क्यों न रहा हो। साराभाई उसे सदा बैठने के लिए कहते। वह बराबरी के स्तर पर उनसे बातचीत कर सकता था। वे सदा चीजों को बेहतर और कुशल तरीके से करने के बारे में सोचते रहते थे। उन्होंने जो भी किया उसे सृजनात्मक रूप में किया। युवाओं के प्रति उनकी उद्विग्नता देखते ही बनती थी। डॉ॰ साराभाई को युवा वर्ग की क्षमताओं में अत्यधिक विश्वास था। यही कारण था कि वे उन्हें अवसर और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए सदा तैयार रहते थे। इसीलिए तो कहते हैं कि वे व्यक्तिविशेष को सम्मान देने में विश्वास करते थे।
संस्थान निर्माता…
डॉ॰ साराभाई एक महान संस्थान निर्माता थे। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थान स्थापित करने में अपना सहयोग दिया। साराभाई ने सबसे पहले अहमदाबाद वस्त्र उद्योग की अनुसंधान एसोसिएशन (एटीआईआरए) के गठन में अपना सहयोग प्रदान किया। यह कार्य उन्होंने कैम्ब्रिज से कॉस्मिक रे भौतिकी में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर लौटने के तत्काल बाद हाथ में लिया। उन्होंने वस्त्र प्रौद्योगिकी में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। एटीआईआरए का गठन भारत में वस्त्र उद्योग के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उस समय कपड़े की अधिकांश मिलों में गुणवत्ता नियंत्रण की कोई तकनीक नहीं थी। डॉ॰ साराभाई ने विभिन्न समूहों और विभिन्न प्रक्रियाओं के बीच परस्पर विचार-विमर्श के अवसर उपलब्ध कराए। डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित कुछ सर्वाधिक जानी-मानी संस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं…
१. भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद;
२. भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद;
३. सामुदायिक विज्ञान केन्द्र; अहमदाबाद,
४. दर्पण अकादमी फॉर परफार्मिंग आट्र्स, अहमदाबाद;
५. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, तिरुवनन्तपुरम;
६. अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद;
७. फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) कलपक्कम;
८. वैरीएबल एनर्जी साईक्लोट्रोन प्रोजक्ट, कोलकाता;
९. भारतीय इलेक्ट्रानिक निगम लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद;
१०. भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल) जादुगुडा, बिहार।
वैज्ञानिक कार्य…
वर्ष १९६६ जब डॉ॰ होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु हुई तो डॉ॰ साराभाई को परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार संभालने को कहा गया। साराभाई ने सामाजिक और आर्थिक विकास की विभिन्न गतिविधियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में छिपी हुई व्यापक क्षमताओं को पहचान लिया था। इन गतिविधियों में संचार, मौसम विज्ञान, मौसम संबंधी भविष्यवाणी और प्राकृतिक संसाधनों के लिए अन्वेषण आदि शामिल हैं। डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद ने अंतरिक्ष विज्ञान में और बाद में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अनुसंधान का पथ प्रदर्शन किया। साराभाई ने देश की रॉकेट प्रौद्योगिकी को भी आगे बढाया। उन्होंने भारत में उपग्रह टेलीविजन प्रसारण के विकास में भी अग्रणी भूमिका निभाई।
डॉ॰ साराभाई भारत में भेषज उद्योग के भी अग्रदूत थे। वे भेषज उद्योग से जुड़े उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने इस बात को पहचाना कि गुणवत्ता के उच्च्तम मानक स्थापित किए जाने चाहिए और उन्हें हर हालत में बनाए रखा जाना चाहिए। यह साराभाई ही थे जिन्होंने भेषज उद्योग में इलेक्ट्रानिक आंकड़ा प्रसंस्करण और संचालन अनुसंधान तकनीकों को लागू किया। उन्होंने भारत के भेषज उद्योग को आत्मनिर्भर बनाने और अनेक दवाइयों और उपकरणों को देश में ही बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साराभाई देश में विज्ञान की शिक्षा की स्थिति के बारे में बहुत चिन्तित थे। इस स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केन्द्र की स्थापना की थी।
डॉ॰ साराभाई सांस्कृतिक गतिविधियों में भी गहरी रूचि रखते थे। वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे। अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ मिलकर उन्होंने मंचन कलाओं की संस्था दर्पण का गठन किया। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई बड़ी होकर भारतनाट्यम और कुचीपुड्डी की सुप्रसिध्द नृत्यांग्ना बनीं।
और अंत में…
तिरुवनन्तपुरम (केरल) के कोवलम में ३० दिसम्बर, १९७१ को डॉ॰ साराभाई का देहान्त हो गया। इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरुवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है। वर्ष १९७४ में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि ‘सी ऑफ सेरेनिटी’ पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा।