शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के बारे में हर कोई जानता है, जी हां! जो गुरुद्वारों के रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है। इसका अधिकार क्षेत्र तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश तक है। इसके साथ ही संघ शासित क्षेत्र चंडीगढ़ भी इसमें सम्मिलित है। आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि अमृतसर स्थित हरिमन्दिर साहिब यही संचालित करते हैं। यह कमेटी पंजाब के मुख्यमंत्री के अधीन आती है। यह कमेटी गुरुद्वारों की सुरक्षा, वित्तीय, सुविधा रख-रखाव और धार्मिक पहलुओं का प्रबंधन करती है और साथ ही सिख गुरुओं के हथियार, कपड़े, किताबें और लेखन सहित पुरातात्विक रूप से दुर्लभ और पवित्र कलाकृतियों को सुरक्षित रखती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज ऐसा क्या है, जो हमने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की बात शुरू कर दी। तो जरा सा सबर कीजिए बताते हैं… आज के दिन यानी २७ दिसंबर को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संस्थापक सदस्यों में से एक सरदार उज्जवल सिंह जी का जन्म हुआ था। आपको यह भी बताते चलें कि उज्जवल सिंह जी संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। देश की आज़ादी तथा विभाजन के बाद वे अपनी अकूत सम्पत्ति पाकिस्तान में छोड़कर भारत आ गये थे। अब विस्तार से।
परिचय…
सरदार उज्जवल सिंह जी का जन्म २७ दिसंबर, १८९५ को शाहपुर जिले में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। पिताजी सुजान सिंह और माता जी लक्ष्मी देवी के दो बेटों में वे छोटे थे, एक परिवार जिसने अपने पूर्वजों को सिख शहीद भाई संगत सिंह को वापस खोजा। उन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेजिएट स्कूल से पढ़ाई करने के बाद लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से इतिहास में मास्टर डिग्री पूरी की। उनके बड़े भाई सर शोभा सिंह जी ने वर्ष १९११·१९३० में नई दिल्ली को बसाया था। बसाया से तात्पर्य की वे नई दिल्ली के निर्माण के दौरान प्रमुख ठेकेदार थे, इतना ही नहीं वे सुविख्यात लेखक खुशवंत सिंह जी के पिता थे।
राजनीतिक जीवन…
सरदार उज्जवल सिंह का कांग्रेस या स्वतंत्रता संग्राम से कोई सीधा संपर्क नहीं था, किंतु उसके बावजूद भी वह संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता का समर्थन करते थे। भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने गृह संसदीय सचिव के पद से त्यागपत्र दे दिया था। वर्ष १९४५ में वे संयुक्त राष्ट्र संघ की एक समिति में भारत के प्रतिनिधि बनकर गए थे। वर्ष १९४६ में वह विधान परिषद और पंजाब विधानसभा के सदस्य भी बने।
वित्तमंत्री तथा राज्यपाल…
देश के विभाजन के वक्त सरदार को अपनी सारी संपत्ति छोड़ कर पाकिस्तान से भारत आना पड़ा था। वे पूर्वी पंजाब की राजनीति में सक्रिय भाग लेते रहे और वहां वित्तमंत्री भी बने। सिर्फ सरकार की विभिन्न समितियों में रहने के बाद वे १ सितम्बर, १९६५ से २६ जून, १९६६ तक पंजाब के और २८ जून, १९६६ से १६ जून, १९६७ तक मद्रास के राज्यपाल रहे। सरदार उज्जवल सिंह बहुत परिश्रमी, निष्ठावान और विश्वसनीय व्यक्ति थे और सिक्खों की ही नहीं वल्कि सर्वसाधारण में भी उनका बेहद सम्मान था।
शिक्षा संस्थान…
१. वर्ष १९६० में पंजाबी विश्वविद्यालय आयोग के सदस्य के रूप में, उन्होंने पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
२. उन्होंने गुरु नानक पब्लिक स्कूल, चंडीगढ़ की स्थापना की, जहां उन्होंने संस्थापक अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
मृत्यु…
सरदार उज्जवल सिंह जी की मृत्यु १५ फरवरी, १९८३ को उनके नई दिल्ली स्थित आवास पर भरे पूरे परिवार के बीच हुआ।