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शिक्षाविद एवं समाजसेविका अथवा यूँ कहें हिंदी मांटेसरी की जनक एवं प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक श्रीमती शालिनी ताई मोघे का जन्म १३ मार्च, १९१२ को इंदौर में हुआ था। शालिनी ताई ने अविभाजित भारत के कराची से मॉन्टेसरी से डिप्लोमा किया तत्पश्चात शिक्षाविद मारिया मॉन्टेसरी से प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के बाद ताई ने इंदौर में मॉन्टेसरी अध्यापक प्रशिक्षण केन्द्र खोला था। उनदिनों तक वे प्रदेश की पहली मॉन्टेसरी प्रशिक्षित अध्यापिका थीं। कालांतर में उन्होंने बाल निकेतन संघ की स्थापना की जो आज भी एक आदर्श स्कूल के रूप में ख्याति प्राप्त है। सामाजिक गतिविधियों में तत्पर रहने वाली ताई की देखरेख में शहर में १२ संस्था संचालित हो रही थीं।

इतना ही नहीं ताई ने घर और बाहर के कामों में बड़ी खूबसूरती के साथ संतुलन बना रखा था। वे महात्मा गांधी और विनोबा भावे से बेहद प्रभावित थीं, अतः उन्होंने हमेशा सादगी पर जोर दिया और अपने विद्यार्थियों को भी यही सिखाती रहती थीं। ताई बच्चों को सिर्फ किताबी शिक्षा देने के पक्ष में नहीं थीं। वह ग्रामीण जनजीवन से परिचित करवाने के लिए स्कूल ट्रिप के लिए बच्चों को आसपास के गांवों में ले जाती थीं, जहाँ वे जीवन मूल्यों को सीख काश सच्चे नागरिक बन सकें। इसलिए उनका सारा जोर शिक्षा के साथ साथ संस्कारों पर भी रहता था।

कालांतर में शालिनी ताई एकीकृत बाल विकास योजना से जुड़ीं और झाबुआ निमाड़ के गांवों में बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने लगीं। आंगनबाड़ी, बालबाड़ी के जरिए गरीब वर्ग के बच्चों और उनकी माताओं को या यूँ कहें समस्त महिलाओं के विकास के लिए वे जीवन भर जुटी रहीं। उनके सामाजिक कार्यों के लिए १९६८ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।

शालिनी ताई के कार्यों के लिए पद्मश्री जैसे अतिसम्मानित सम्मान के अलावा १९९२ में जमनालाल बजाज पुरस्कार २००९-१० में नई दुनिया नायिका सम्मान एवं २०११ में मरणोपरांत मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें प्रदेश की ‘गौवरवशाली बेटी’ घोषित कर सम्मानित किया।

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