बक्सर वासियों दिए जलाओ, खुशियाँ मनाओ…
आज हमारी धरती के एक महान विभूति का जन्मोत्सव है
आचार्य शिवपूजन सहाय
९ अगस्त, १८९३ क़ो उनवास ग्राम, उपसंभाग बक्सर, शाहाबाद ज़िला (बिहार) में हुआ था।
आरा वासियों खुशियाँ आप भी मनाओ क्यूंकि शिक्षक तो आप ही हो उनके, शिक्षा, आरा नगर के एक हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
आज की खुशियाँ बंगाल के लिए भी है औऱ उत्तर प्रदेश के लिए भी…. कलकत्ता से उन्होने पत्रकारिता की पढ़ाई की।
लखनऊ में प्रेमचंद जी के साथ ‘माधुरी’ का सम्पादन किया, उसके बाद काशी में प्रवास और पत्रकारिता तथा लेखन कार्य। आचार्य शिवपूजन सहाय जी ‘लहेरियासराय’ (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र ‘बालक’ का सम्पादन किया। कुछ वर्ष तक राजेंद्र कॉलेज, छपरा में हिंदी के प्राध्यापक भी रहे, तत्पश्चात पटना में उनका आगमन हुवा औऱ नौ वर्ष तक पटना में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक पद को सुशोभित किया।
उस समय तक हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में उनकी ख्याति हो चुकी थी। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया तथा १९६२ में भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा दी. लिट्. की मानक उपाधि दी गई।
हिन्दी साहित्य में एक उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में “आचार्य”प्रसिद्ध थे। इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख ‘लक्ष्मी’, ‘मनोरंजन’ तथा ‘पाटलीपुत्र’ आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय ‘बिहार राष्ट्रभाषा परिषद’ के संचालक तथा ‘बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की ओर से प्रकाशित ‘साहित्य’ नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे। उन्होंने सामाजिक जीवन का शुभारम्भ हिन्दी शिक्षक के रूप में किया और साहित्य के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये।
इस तरह से देखा जाए तो बक्सर क्या, बिहार, बंगाल या उत्तर प्रदेश ही नहीं वरन उन्होने पूरे हिन्दी जगत को आलोकित किया है, अपने आलोक से।
शिवपूजन सहाय जी की ‘देहाती दुनिया’ प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति की पहली पाण्डुलिपि लखनऊ के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। उनको इस बात का हमेशा दु:ख रहा।