December 4, 2024

नमन आपको…
आपके काम को…
आपके सम्मान को…
उन अमर पुरोधा को…
हे जननी जन्मभूमि तेरी सदा जय हो ।

क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल आवश्यकता थी, औऱ व्यवस्था की जरूरत को देखते हुवे, शाहजहाँपुर में बैठक हुई । बैठक के दौरान क्रांतिकारियों के नेता श्री राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने ९ अगस्त, १९२५ को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी “आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन” को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व ६ अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोल दिया औऱ सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेज सरकार ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड सुनायी गयी। इस मुकदमें में १६ अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम ४ वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी तक का दण्ड सुनाया गया था।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला….

इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला….

अफसोस….

क्या फायदा इस काण्ड का, उन्होने ये कभी नहीं सोचा होगा की जिस देश के लिए वो अपनी आहूति दे रहे हैं उसी चिता पर उसके देशवासी अपनी अपनी रोटियां सेकेंगे औऱ जो तरसेंगे वो होंगे उनके परिवार वाले। इससे भी बड़ा अफसोस आप को तब होगा जब आप यह जानेंगे कि ४० क्रान्तिकारियों मे ३१ सवर्ण औऱ ९ ओबीसी थे। फरार क्रान्तिकारियों में से दो को पुलिस ने बाद में गिरफ़्तार किया था। उनमे से एक अशफाक उल्ला खाँ थे औऱ दूसरा शचीन्द्रनाथ बख्शी।

हाय रे ये कैसा देश… औऱ इसका कानून। जिन्होने जान दिए उन्हें इतिहास से गायब और उनके वंशजों को उनके आस्तित्व से गायब करने कि पुरी तैयारी चल रही है।

जय हिन्द… तेरी मिट्टी की क़सम हम आज खाते हैं

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए-क़ातिल में है !

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ !
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है !

खीँच कर लाई है हमको क़त्ल होने की उम्म्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है !

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !

अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले- ‘अश्विनी’ में है !

जननी तेरी सदा जय हो ! ! !

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