शायद आपको याद हो, गुल गुलशन गुलफाम
१९९१ की दूरदर्शन टेलीविजन धारावाहिक, जो वेद राही द्वारा निर्देशित है। यह कश्मीर पर आधारित और कश्मीरी परिवार को चित्रित करने वाले पहला धारावाहिक था। यह एक त्वरित हिट बन गया और ४५ एपिसोड तक चला था। इसे २००२ में सहारा टीवी पर दोबारा टेलीकास्ट किया गया था।
वेद राही जी हिन्दी और डोगरी के साहित्यकार तथा फिल्म निर्देशक हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित फिल्म वीर-सावरकर बनाई और दुनियाँ से सही मायने में पहली बार इस महान विभूति का परिचय कराया।
वेद राही जी का जन्म २२ मई १९३३ को जम्मू कश्मीर में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला मुल्कराज सराफ था जो जम्मू से “रणबीर” नाम का समाचार-पत्र निकालते थे। राही जी को बचपन से ही लिखने का शौक था। उन्होंने पहले उर्दू में लिखना आरम्भ किया और फिर हिंदी और डोगरी भाषा में भी लिखने लगे।
उनकी अब तक की कुछ मशहूर कहानियां है – काले हत्थे, आले, क्रॉस फायरिंग। उनके प्रमुख उपन्यासों में झाड़ू बेदी ते पत्तन, परेड, टूटी हुई डोर, गर्म जून आदि।
वेद राही ने फिल्मी संसार में कदम रामानंद सागर जी के कारण रखा जिनके साथ जुड़कर उन्होंने लगभग २५ हिंदी फिल्मों के लिए कहानिया, डायलॉग और स्क्रीन राइटिंग की। इन्होने कई फिल्में की जैसे वीर सावरकर, बेज़ुबान, चरस, संन्यासी, बे-ईमान, मोम की गुड़िया, आप आये बहार आई, पराया धन, पवित्र पापी, ‘यह रात फिर न आएगी’ आदि। इसके अलावा उन्होंने 9 फिल्मों और सीरियल का निर्देशन भी किया एहसास (टीवी सीरीज ), रिश्ते (टीवी सीरीज), ज़िन्दगी (टीवी सीरीज), गुल गुलशन गुलफाम (टीवी सीरीज), नादानियाँ, काली घटा, प्रेम पर्वत, दरार आदि। इसके अलावा इन्होने काली घटा नामक फिल्म निर्मित भी की।
देखने वाली अथवा जानने वाली बात यह है की राही जी की बेबाक जीवन कोम्युनल विचार को चोट करती थी इसलिए उन्हें वो मुकाम हासिल ना हो सकी जो उनहें मिलना चाहिए था…
सरकारी तंत्र उन्हें कभी पसंद नहीं करता था, बॉलीवुड उनसे डरने लगा था क्यूंकि सनातनी विचारधारा एवं क्रांतिकारी सोच के व्यक्ति को दबा कर ही नई विचारधारा की जहरीली पौध उगाई जा सकती थी।
वेद राही जी के जन्मदिन पर Ashwini Rai’अरुण’ का नमन वंदन।
धन्यवाद !