महज ३७ वर्ष की आयु में पद्मश्री का पुरस्कार पाना क्या आश्चर्य की बात नहीं लगती? इसी तरह इतनी कम उम्र में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण का पुरस्कार का मिलना भी आश्चर्यजनक से क्या कम है? और अंत में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड का मिलना, और वो भी दो बार। एक बार १९९२ में और दूसरी बार २००९ में।
आप सोच रहे होंगे की हम किनकी बात कर रहे हैं, तो दोस्तों आईए हम उनका संक्षिप्त परिचय आपके सामने रखते हैं। तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ के सुपुत्र उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का जन्म ९ मार्च, १९५१ को मुंबई में हुआ था, और वहीं उनका बचपन बीता। १२ साल की उम्र से ही उन्होंने संगीत की दुनिया में तबले की थाप से दुनिया को मस्त करना शुरू कर दिया था। शिक्षा के बाद उन्होंने अपने आप को तबला के क्षेत्र स्थापित करना शुरू कर दिया। उनका पहला एलबम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड आया था। उसके बाद तो जैसे उन्होंने ठान लिया कि अपने तबले की थाप को दुनिया भर में बिखेरेंगे। वक्त के साथ ज़ाकिर हुसैन की शोहरत भारत के साथ ही साथ विश्व के विभिन्न हिस्सों में फैलती रही और आज भी वो संगीत के आसमान पर वैसे ही चमक रहे हैं। ज़ाकिर हुसैन के भाई फ़ैज़ल क़ुरैशी एवं तौफ़ीक क़ुरैशी भी और उनकी बहन ख़ुर्शीद औलिया नी क़ुरैशी भी संगीत की दुनिया में अपना परचम फहरा रहे हैं।
शैली : शास्त्रीय/विश्व संगीत, ज्याज फ्यूजन
व्यवसाय : तबला वादन
वाद्य यन्त्र : तबला
रिकॉर्ड लेबल : HMV
जाकिर हुसेन को तबला वादन कला मे 37 साल की उम्र में पद्म भूषण मिलना एक उम्दा बात है, इन्हें हार्दिक बधाई देते हैं
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