रश्मिरथी (द्वितीय सर्ग) रामधारी सिंह “दिनकर” शीतल, विरल एक कानन शोभित अधित्यका के...
कविता
जीवन की धमनियों में बहते प्रवाह को ही कविता कहते हैं।
रश्मिरथी (प्रथम सर्ग) रामधारी सिंह “दिनकर” ‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन...
नई आशा जगाकर मन में किसको हो भरमाए तुम? बीते वर्ष कुछ ना कर...
बचपन में गाया करते थे जय कन्हैयालाल की मदन गोपाल की लइकन के हाथी...
जी हां! मैंने देखा, उसे अपनी दूरबीन से मुझे उसमें एक निश्चल और...
डूबने के लिए तुमको बस गहरे पानी की जरूरत होती है डूबने के लिए...
मेरे बच्चे! तुम जब बड़े हो जाना तो सुन लेना अपनो की बात अगर...
वो कौन है? उसके पीछे कौन है? क्या उसने कुछ गलत किया है?...
इक रात की खामोशी समंदर से गहरी थी और कालिमा काजल से भी...
जब कभी यह खिलते होंगे, चिड़ियन भी सब चहकते होंगे। बगियन तो बगियन...