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श्री भीष्म साहनी जी से श्री ललित मोहन जोशी जी ने बीबीसी हिंदी सेवा के लिए २ दिसंबर, २००२ को पुणे में विशेष बातचीत की थी। इस बातचीत में श्री साहनी ने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं, उपन्यास तमस के लेखन, विभाजन की त्रासदी, हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य, आज की परिस्थितियों और अपने सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण पर खुल कर विचार व्यक्त किए: “आम आदमी नहीं चाहता कि किसी भी तरह के फ़साद हों, हिंसा हो, आम आदमी तो चैन से जीना चाहता है।”

 

सवाल : अपने शुरुआती जीवन के बारे में कुछ बताइए।

जवाब : मेरी पैदाइश रावलपिंडी में आठ अगस्त १९१५ को हुई थी। बचपन वहीं पर बीता और फिर मैं बीए और एमए की पढ़ाई के लिए लाहौर चला गया। मैंने वहाँ गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया। लौटकर आया। मेरे वालिद व्यापार करते थे। उनकी बड़ी ख़्वाहिश थी कि उनके दोनों बेटे भी उनके कारोबार में हाथ बटाएं। पहले मेरे भाई बलराज जी उनके साथ काम किया करते थे फिर वे चले गए।

सवाल : बलराज जी आपसे बड़े थे।

जवाब : बलराज साहनी जी मेरे बड़े भाई थे। और उनके जाने के बाद मैं कारोबार में हाथ बँटाता रहा। पर मुझे शौक़ था – नाटक वाटक खेलने का, तो मैं एक जगह पर बिना वेतन के ही पढ़ाने लगा और साथ ही साथ नाटक वग़ैरा भी खेलता रहा। जब पाकिस्तान बनने का ऐलान हो गया तो उसके बाद धीरे धीरे लोग उस इलाक़े को छोड़ने लगे। जब दिल्ली में स्वाधीनता समारोह होने जा रहा था तब मैं रावलपिंडी छोड़कर दिल्ली आया था सिर्फ़ देख पाने के लिए कि लाल क़िले पर झंडा फहराएंगे पंडित नेहरू और हिंदुस्तान की आज़ादी का जश्न होगा। मैं तो जश्न देखने आया था इस इरादे से कि हफ़्ते भर बाद लौट आऊंगा। लेकिन जब दिल्ली पहुंचा तो पता चला कि गाड़ियां बंद हो गईं, फिर मेरा लौटना नामुमकिन हो गया।

सवाल : साहनी साहब, आपने जो तमस में लिखा है वह लोगों को बहुत गहराई में प्रभावित करता है। विभाजन के बारे में अपने अनुभवों को हमसे बाँटना चाहेंगे।

जवाब : बात ये है कि अगर आप देश के बँटवारे के बारे में लिखते हैं तो ज़ाहिर है आपका नज़रिया, आपकी भावनाएं, आपके जुड़ाव, आप जिन बातों में विश्वास रखते हैं, वो सब उभर कर आएंगी ही। ये तो ज़ाहिर है और जिस किसी ने भी वो नज़ारे देखे हों, उस ज़माने में, वो नहीं चाहेगा कि इस तरह की वारदात फिर हों।

मसलन एक कुएँ में औरतें छलाँग लगाकर डूब मरीं। वो कुआँ मैंने देखा, औरतों की लाशें देखीं। दिल दहल जाता है ऐसे मंज़र देखकर।

सवाल : विभाजन की जो पूरी त्रासदी है उसके लिए आप किसको ज़िम्मेदार ठहराते हैं।

जवाब : ज़िम्मेदार! हम सब ज़िम्मेदार हैं। अंग्रेज़ ज़िम्मेदार था क्योंकि अंग्रेज़ ने हमें एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काया। एक दूसरे से अलग किया। ये तो मानी हुई बातें हैं। तारीख़-इतिहास पढ़ने वाले लोग जानते हैं कि क्या कुछ होता रहा। एक वायसरॉय ने तो साफ़ लिखा था कि जिस दिन हिंदू और मुसलमान मिल जाएंगे उस दिन हमारा यहाँ से कूच करने का दिन आ जाएगा। तो इसका क्या मतलब हुआ। आम आदमी नहीं चाहता कि फ़साद हों, हिंसा हो। आम आदमी चैन से जीना चाहता है। आराम से एक दूसरे के साथ रहना चाहता है और हमारे लोगों में आमतौर पर विश्वास भी है इस बात पर, पुराना इतिहास है हमारा।

सवाल : तमस में अभिनय करने के लिए किस तरह निहलानी जी ने आपको प्रेरित किया और आपने स्वीकार भी किया।

जवाब : निहलानी जी जिन दिनों तमस बनाने की चर्चा कर रहे थे उन्हीं दिनों उन्होंने कहा था कि मैं ये पार्ट आपको दूंगा। और मैं चौंका भी था। पर मुझे ये अच्छा भी लगा था कि मैं एक भूमिका भी निभाऊंगा।

सवाल : आपने इतना कुछ लिखा है, इतना कुछ आपने जीवन में किया है, आज आपको कैसा लगता है।

जवाब : अगर तो हम अपनी दिक्कतों के बारे में सोचें, मसलों के बारे में सोचें तो लगता है कि हमने ज़्यादा तरक्की नहीं की है। हम बहुत सी अपनी परेशानियों से अब भी जकड़े हुए हैं। इसमें संदेह नहीं है। लेकिन फिर भी देश वहीं पर नहीं खड़ा है जहां पचास साल पहले था।

सवाल : आप भविष्य को, मतलब समाज और भारत के भविष्य को, इतनी निराशाओं, चिंताओं और ख़तरों के बावजूद किस रूप में देखते हैं।

जवाब : मैं निराश तो नहीं हूँ। जीवन बड़ा पेचीदा होता है और जीवन एक जगह थमता भी नहीं है, स्थाई नहीं होता है। सारा वक़्त बदलता रहता है, बदलता रहता है। और जो शक्तियाँ उसे बदलती हैं वो भी एक जैसी नहीं रहती हैं। आज अगर नकारात्मक पहलू ज़ोर पर हैं तो बहुत मुमकिन है कल ज़्यादा सकारात्मक पहलू आगे आ जाएं। तो इसलिए मायूस होने की तो बात नहीं है।

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