आज हम बात करेंगे, खूबसूरत कश्मीर घाटी के उस बदसूरत दास्तां के बारे में जो वहां के रह रहे हिंदुओं पर हुए अत्याचार के हद को बयां ही नहीं करेगा वरन आपके आत्मा को झकझोर कर रख देगा। यह दास्तां है गिरिजा टिक्कू के बारे में, जिसे शायद ही कोई हिंदुस्तानी जानता होगा। वैसे तो गिरिजा टिक्कू के बारे में कई किताबों और लेखों में कश्मीरी पंडितों ने स्वयं किया है। परंतु यह बात अंतराष्ट्रीय तब हुई, जब कश्मीरी कॉलमिस्ट, राजनीतिक टिप्पणीकार सुनंदा वशिष्ठ ने अमेरिका के संसद में इस अत्याचार के साथ कई अन्य अत्याचारों का वहां जिक्र किया। आइए आज हम आपको यह बात बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आपके आंखों में खून और नसों में लावा बहने ना लगे तो कहना…
दास्तां…
बात ४ जून, १९९० की है, जब एक लड़की के साथ गैंगरेप करने के बाद आरी से काट दिया गया था। अत्याचार से आहत होकर १९ जनवरी, १९९० से कश्मीर में हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया था। पलायन के दौरान यानी ४ जून, १९९० को गिरिजा टिक्कू नाम की एक लड़की बांदीपुरा से त्रहगाम, कुपवाड़ा में अपने स्कूल के लिए निकली थी, जहां वह लैब असिस्टेंट थी। शाम को जब लौटने में देरी हुई तो वह टिक्कर में अपने रिश्तेदारों के घर रुक गई। पर वह क्या जानती थी कि आज उसका आतंकियों के द्वारा अपहरण होने वाला है।
चार आतंकियों ने उसे उसके रिश्तेदारों के घर से अपहरण कर के दूसरी जगह ले गए। जहां उसके साथ चार दिनों तक रेप किया। इसके बाद उसे आरा मशीन से काटकर दो टुकड़ों में कर दिया। और फिर २५ जून, १९९० को उसका कटा हुआ शव कुत्तों के सामने खाने के लिए फेंक दिया। जिस किसी ने भी इस शव को देखा हर किसी की चीख निकल गई। मगर वे किस तरह के लोग थे, जिन्होंने इतनी घिनौना कृत्य किया था, कहने को तो वे यह कहते फिरते थे कि यह कार्य वे अपने मजहब के लिए करते हैं। मगर ऐसा कौन सा धर्म अथवा मजहब है जो, मानवता से ऊपर है। और अगर कोई है तो वह धर्म नहीं हो सकता, क्योंकि कोई धर्म मानवता के साथ इतना गिरा हुआ कार्य करने का अनुमति नहीं देता। वह धर्म नहीं है वो वहसी दरिंदों का एक संगठन है।
आखिर गिरिजा टिक्कू का क्या दोष था, बस इतना ही न कि वह उन वहसियों की नजर में एक काफिर थी यानी हिंदू। इसलिए उसे क्रूरता से मार दिया गया। इस्लामिक शासन में उसे जीने का कोई अधिकार नहीं था। इतना ही नहीं आतंकियों ने उसकी मौत पर शोक मनाने की भी इजाजत नहीं दी। आतंकियों ने यह धमकी दे रखी थी कि गांव का कोई सदस्य अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होगा। वर्ना उसके साथ भी ऐसा ही होगा। उस बेचारी के अंतिम संस्कार में सिर्फ परिवार के ही चार-पांच सदस्य शामिल हुए थे। उन्होंने ही शरीर के टुकड़ों को जोड़कर उसका अंतिम संस्कार किया। इतना ही नहीं, वे सभी भी रात को ही गांव से गायब हो गए। क्योंकि उन्हें इस बात का डर था कि कहीं उनकी भी हत्या ना कर दी जाए।
अपनी बात…
हम अक्सर अपने देश में सीरिया की स्थिति देखते हैं, और उस विषय पर गंभीरता से सोच कर उसे कोसते हैं और दुख जताते हैं, परंतु क्या कभी कश्मीर की इस स्थिति पर हम अपने सरकार से पूछते हैं, नहीं ना। परंतु सुनंदा वशिष्ठ ने गिरिजा की कहानी को अमेरिकी संसद में बताते हुए कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठ की पोल खोली थी। उन्होंने बताया था कि कश्मीरियों ने उसी तरह का आतंक और अत्याचार झेला, जैसा इस्लामिक स्टेट सीरिया में अंजाम दिया गया।
सुनंदा वशिष्ठ ने बताया था, ”मैं कश्मीर की अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हूं। मैं यहां इसलिए बोल रही हूं क्यों कि मैं जिंदा हूं। मैं उस गिरिजा टिक्कू की बात कर रही हूं। वह सीधी साधी लैब असिस्टेंट थी। वह उतनी खुशनसीब नहीं थी, जितनी मैं हूं। उसका अपहरण हुआ, गैंगरेप हुआ। उसे जिंदा आरी मशीन में दो टुकड़ों में काट दिया गया। उसका गुनाह सिर्फ उसका धर्म था।”