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आज हम एक बार फिर से स्वर्ग से सुंदर कश्मीर को नरक से भी बदतर बनने की उस सच्ची घटना पर आते हैं, जो वर्ष १९८९–९० के दौरान कश्मीर के मासूम हिंदुओ को घाटी से पलायन करने पर मजबूर करने के लिए की गयी पहली हत्या थी। हुआ यह था कि कश्मीरी हिंदुओं के सर्वमान्य नेता टीकालाल टपलू को मार कर अलगाववादियों ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अब कश्मीर घाटी में सिर्फ ‘निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा’ ही चलेगा।
घटना…
पं० टीकालाल टपलू जी पेशे से अधिवक्ता और जम्मू कश्मीर भाजपा के अध्यक्ष थे। इतना ही नहीं भाजपा अध्यक्ष होने से पूर्व वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। पं० टपलू की वकालत की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हुई थी परंतु पैसे कमाने के लिए उन्होंने इस पेशे का कभी भी दुरुपयोग नहीं किया। वकालत से वे अच्छा कमा लेते थे, परंतु वे जो भी कुछ कमाते उसे विधवाओं और उनके बच्चों के कल्याण हेतु दान कर देते थे। उनकी नजर में सभी धर्म समान थे अतः उन्होंने कई मुस्लिम लड़कियों की भी शादियाँ करवाई थीं। उनकी इस स्वभाव से पूरे हब्बाकदल निर्वाचन क्षेत्र में हिन्दू और मुसलमान सभी उनका सम्मान करते थे तथा उन्हें ‘लाला’ अर्थात बड़ा भाई कह कर सम्बोधित करते थे।
जेहाद…
उनकी यह छवि अलगाववादी संगठन की आँखों का काँटा बनती जा रही थी। क्योंकि पं० टिकालाल टपलू उस समय कश्मीरी हिंदुओं के अलावा कुछ मुसलमानों के सर्वमान्य और सबसे बड़े नेता बन चुके थे। वास्तविकता यह थी कि अलगाववादियों को घाटी में अपनी राजनैतिक पैठ बनाने के लिए कश्मीरी हिंदुओं को अपने रास्ते से हटाना बेहद जरुरी था, और ऐसा इसलिए था जो किसी भी कीमत पर पाकिस्तान का समर्थन नहीं करते। इसीलिए जम्मू कश्मीर लिबेरशन फ्रंट ने पंडितों के विरुद्ध दुष्प्रचार के विविध हथकंडे अपनाने शुरू किए। पहले तो उन्होंने कश्मीर घाटी के कुछ लोकल अखबारों में पंडित टीकालाल टपलू के साथ उच्च न्यायालय के जस्टिस नीलकंठ गंजू समेत कई प्रतिष्ठित हिंदुओं के विरुद्ध दुष्प्रचार सामग्री प्रकाशित करवाना शुरु कर दिया। उसके बाद आतंकियों ने पं० टपलू सहित अन्य माननीय और प्रतिष्ठित हिंदुओं की हत्या की रणनीति बनाई। इस बात का आभास पं० टपलू को हो गया था इसलिए उन्होंने अपने परिवार को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से उन्हें दिल्ली पहुँचा दिया और स्वयं ८ सितम्बर को कश्मीर वापस लौट आये।
हमला और हत्या…
दिल्ली से वापसी के चार दिन बाद चिंक्राल मोहल्ले में स्थित उनके आवास पर हमला किया गया। यह हमला उन्हें सर्वप्रथम सचेत करने के लिए किया गया था। जिससे वे यहां से अपने परिवार के पास वापस भाग जाएं, परंतु वे भागे नहीं वहीं डटे रहे। उन्हें कानून, पुलिस और राज्य सरकार सहित केंद्र सरकार पर पूरा भरोसा था। परंतु महज दो दिनों के बाद यानी १४ सितम्बर को सुबह·सुबह पं० टीकालाल टपलू अपने आवास से बाहर निकले तो उन्होंने पड़ोसी की बच्ची को रोते देख, उसका हाल पूछने लगे। इस पर उसकी माँ ने बताया कि स्कूल में कोई कार्यक्रम है और बच्ची को देने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। पं० टपलू ने बच्ची को गोद में उठाया और उसे पाँच रुपये देकर चुप करा दिया। इसके बाद जैसे ही उन्होंने सड़क पर कुछ कदम बढ़ाया होगा कि आतंकवादियों ने उनकी छाती को गोलियों से छलनी कर दिया।
अपनी बात…
इसके तुरंत बाद ही कश्मीरी हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया, क्योंकि जेहाद के नाम पर यह पहली हत्या थी। कश्मीरी हिंदुओं के सर्वमान्य नेता को मार कर अलगाववादियों ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अब कश्मीर घाटी में ‘निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा’ ही चलेगा। टीकालाल टपलू की हत्या के बाद कश्मीर टाइम्स की एक पत्रकार काशीनाथ पंडिता ने एक लेख लिखकर अलगाववादियों से पूछा कि वे आखिर क्या चाहते हैं। उसके ठीक अगले दिन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने यह जवाब दिया, “कश्मीरी पंडित भारत को समर्थन देना बंद करें और अलगाववादी आन्दोलन का साथ दें या फिर कश्मीर छोड़ दें।