November 21, 2024

एक युवा डॉक्टर जो अपनी शिक्षा पूरी कर, पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है। ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दुःख, अभाव, अज्ञान व अन्धविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक शोषण में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका सामना होता है। और अंत में कथा का अन्त इस आशामय संकेत के साथ होता है कि युगों से सोई हुई ग्राम-चेतना तेजी से जाग रही है। देखने से यह कोई आम कहानी सा प्रतीत होता है। कारण इस कहानी को इतनी बार अलग अलग तरीके से लिखा, पढ़ा और सुना जा चुका है कि यह कोई आम कहानी सा प्रतीत हो रहा है। मगर इस आम कहानी का आधार यानी मूल में वर्ष १९५४ में प्रकाशित मैला आँचल उपन्यास है। जिसकी कथावस्तु बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के मेरीगंज की ग्रामीण जिंदगी से संबद्ध है। स्वतंत्रता के तुरंत बाद के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को ग्रामीण संस्करण में ढाला गया है। प्रकाशन के उपरांत मैला आंचल को अत्यधिक ख्याति मिली, जिसके लिए रेणु जी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रेणु जी को यानी फणीश्वर नाथ “रेणु” जी की जितनी ख्याति मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक महान कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। इतना ही नहीं आलोचकों ने तो इसे गोदान के बाद हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।

परिचय…

बिहार के अररिया जिला अंतर्गत फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना नमक गाँव में ४ मार्च, १९२१ को जन्में रेणु जी की शिक्षा भारत और नेपाल दोनों देशों में हुई। प्रारंभिक शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद रेणु जी ने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की। इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से १९४२ में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। रेणु जी का बिहार के कटिहार से बेहद गहरा संबंध रहा है। पहली शादी कटिहार जिले के हसनगंज प्रखंड अंतर्गत बलुआ ग्राम में काशीनाथ विश्वास जी की पुत्री रेखा रेणु से हुई, हसनगंज प्रखंड का ही दूसरा गांव महमदिया में उनकी दूसरी पत्नी पद्मा रेणु का भी मायका है। इतना ही नहीं रेणु जी की दो पुत्रियों का, जिनमें सबसे बड़ी कविता रॉय और सबसे छोटी वहीदा रॉय की शादी महमदिया और कवैया गांव में हुई है। इसीलिए उनकी कई रचनाओं में कटिहार रेलवे स्टेशन का उल्लेख मिलता है।

क्रान्तिकारी…

पढ़ाई के दौरान उन्हें देशभक्ति का ऐसा नशा चढ़ा कि वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। भारत तो आजाद हो गया वर्ष १९४७ में, मगर रेणु जी का काम अभी बाकी था। वे फिर से एक बार नेपाल पहुंच गए। वर्ष १९५० में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। एक ऐसा पहला साहित्यकार जो पहले क्रांतिकारी था और जिसने एक नहीं बल्कि दो देशों की आजादी के लिए लड़ाइयां लड़ीं, और दोनों आजाद हुए। पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में भी अहम भूमिका निभाई। उनका कारवां आगे भी ऐसे ही चलता रहता मगर होनी को कौन रोक सकता है, शायद ईश्वर को उनसे कुछ और भी कार्य कराने थे, वे भीषण रूप से रोगग्रस्त हो गए।

साहित्य…

ये वर्ष १९५२-५३ की बात है, जब वे बेहद बीमार पड़ गए। जिसके बाद उनका झुकाव लेखन की ओर हो गया। उनके इस अंतराल की झलक ‘तबे एकला चलो रे’ में देखी जा सकती है।उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी। इनकी लगभग हर कहानी में पात्रों की सोच घटनाओं से प्रधान होती थी। एक आदिम रात्रि की महक इसका एक सुंदर उदाहरण है। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी उनके परम मित्र थे। उन्होंने अपनी लेखनी से प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परंपरा को आगे बढाया है और उन्हें आजादी के बाद का प्रेमचंद भी कहा जाता है।

कृति सारणी…

(क) उपन्यास :

१. मैला आंचल
२. परती परिकथा
३. जूलूस
४. दीर्घतपा
५. कितने चौराहे
६. पलटू बाबू रोड

(ख) कथा-संग्रह :

१. एक आदिम रात्रि की महक
२. ठुमरी
३. अग्निखोर
४. अच्छे आदमी

(ग) रिपोर्ताज :

१. ऋणजल-धनजल
२. नेपाली क्रांतिकथा
३. वनतुलसी की गंध
४. श्रुत अश्रुत पूर्वे

(घ) प्रसिद्ध कहानियाँ :

१. मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)
२. एक आदिम रात्रि की महक
३. लाल पान की बेगम,
४. पंचलाइट
५. तबे एकला चलो रे
६. ठेस
७. संवदिया

विवाद…

१. जितनी बड़ी प्रसिद्धि उन्हें मिली उतने विवाद भी उनके दामन में आ गिरे। उनके उपन्यास मैला आंचल को कई आलोचकों ने सतीनाथ भादुरी के बंगला उपन्यास ‘धोधाई चरित मानस’ की नक़ल बताने की भी कोशिश की। पर समय के साथ इस तरह के झूठे आरोप ठण्डे पड़ जाते हैं।

२. साहित्य के विद्वानों के अनुसार रेणु के उपन्यास लेखन में मैला आँचल और परती परिकथा तक लेखन का ग्राफ ऊपर की और जाता है मगर इसके बाद के उपन्यासों में वह बात नजर नहीं आती। मगर मेरी नजर में यह तुलना सिर्फ रेणु बनाम रेणु है नाकि कोई अन्य।

सम्मान…

प्रथम उपन्यास ‘मैला आंचल’ के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जिसके बाद सारे विवाद शांत हो गए।

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