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पानीपत के युद्ध ने हर बार भारतीय इतिहास को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। पानीपत में तीन युद्ध हुए हैं…

पानीपत का पहला युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था। वर्ष १५२६ में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, की एक ज्यादा बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया।

पानीपत का द्वितीय युद्ध उत्तर भारत के हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर की सेना के बीच ५ नवम्बर, १५५६ को पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए यह एक निर्णायक जीत थी। इस युद्ध के फलस्वरूप दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुगलों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक मुगलों के पास ही रहा।

पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच १४ जनवरी, को वर्तमान पानीपत के मैदान मे हुआ जो वर्तमान समय में हरियाणा में है, इस युद्ध में भील प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया। इस युद्ध मे दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।

अब आते हैं मुख्य मुद्दे… पहले और दूसरे युद्ध की बात को यहाँ अगले आलेख तक के लिए जाने देते हैं, पानीपत के तीसरे युद्ध की प्रमाणिक ग्रंथ और सबसे पुराना इतिहास त्र्यंबक शेजवलकर जी द्वारा लिखित इतिहास है। वे महाराष्ट्र के जानेमाने इतिहासकार हैं। वे मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। जिनका जन्म २५ मई, १८९५ को रत्नागिरी जिले के कसैली में हुआ था। उन्होंने आर्य शिक्षा समाज द्वारा संचालित स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने विल्सन कॉलेज, मुंबई से कला स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उनकी पहली नौकरी मई १९१८ से जून १९२१ तक सैन्य लेखा विभाग में थी। उन्होंने अगस्त १९३९ से २५ मई १९५५ तक डेक्कन कॉलेज में काम किया। अपनी सेवानिवृत्ति के उपरांत भी उन्होंने डेक्कन कॉलेज में मृत्यु तक काम करना जारी रखा। वह १९१८ से भारतीय इतिहास संसोधक मंडल से जुड़े थे। वहां वह अन्य इतिहासकारों जैसे दत्तो वामन पोद्दार, गोविंद सखाराम सरदेसाई और दत्तोपंत आप्टे के संपर्क में आए।

इनके द्वारा रचित एक शोधित इतिहास श्री शिव छत्रपति के लिये उन्हें सन् १९६६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित (मरणोपरांत) किया गया था। वे महाराष्ट्र के पहले ऐसे इतिहासकार थे जिन्होंने पानीपत के तीसरे युद्ध पर अध्ययन किया।पानीपत की तीसरी लड़ाई सबसे विश्वसनीय ग्रंथ है। उन्होंने पानीपत ग्रंथ लिखने के लिए पेशवाओं के ऐतिहासिक पत्रों का गहराई से अध्यन किया, वे स्वयंम पानीपत के तीसरे युद्ध से जुड़ी जगहों पर प्रवास करने गए थे। निर्माता निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की फिल्म पानीपत त्रयंबक शेजवलकर जी की पानीपत ग्रंथ पर ही आधारित थी।

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