ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले, और बदी से टले
ताकी हसते हुये निकले दम
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इन्सान घबरा रहा
हो रहा बेख़बर, कुछ ना आता नज़र
सुख का सूरज छुपा जा रहा
हैं तेरी रोशनी में जो दम
तो अमावस को कर दे पूनम
नेकी पर चले, और बदी से टले
ताकी हसते हुये निकले दम
ऐ मालिक तेरे बंदे हम…
वर्ष १९५७ में वसन्त देसाई के संगीत निर्देशन में “दो आंखे बारह हाथ” का ये गीत आज भी श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। इस गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार ने इस गीत को सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया।
आईए आज ही के दिन यानी ९ जून, १९१२ को गोवा के कुदाल नामक स्थान पर जन्में श्री बसंत देसाई को बचपन के दिनों से ही गीत संगीत के प्रति बेहद रूचि थी। फिल्मी सफर के शुरुआत में उन्हें ‘प्रभात फ़िल्म्स’ की मूक फ़िल्म “खूनी खंजर” में अभिनय करने का मौका मिला, यह वर्ष १९३० का था। १९३२ में वसन्त को “अयोध्या का राजा” में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला, वैसे तो जानकारों के अनुसार संगीतकार के रूप में यह उनकी सही शुरुआत नहीं थी मगर शुरुआत तो शुरुआत होती है। इन सबके साथ ही उन्होंने इस फ़िल्म में एक गाना “जय जय राजाधिराज” भी गाया था, तो गायकी की भी शुरुआत। फिर भी वसन्त फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिर आया वर्ष १९३४ जिसमें प्रदर्शित फ़िल्म “अमृत मंथन” में गाया उनका गीत “बरसन लगी” श्रोताओं के बीच जबरदस्त लोकप्रिय हुआ।
किन्तु वसन्त को जब यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाए संगीतकार के रूप में ही उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। तब उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वसन्त मराठी नाटकों में भी संगीत देते रहे। वर्ष १९४२ में प्रदर्शित फ़िल्म “शोभा” के जरिए बतौर संगीतकार वसन्त देसाई ने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की, लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। अब आया वर्ष १९४३ का जब वी. शांताराम अपनी “शकुंतला” के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। अतः वी. शांताराम को अपनी फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। यहीं से सही मायनो में वसन्त संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।
वर्ष १९६४ में प्रदर्शित फ़िल्म “यादें” वसन्त देसाई के कॅरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वसन्त को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि फ़िल्म के पात्र के निजी जिंदगी के संस्मरणों को बैकग्रांउड स्कोर के माध्यम से पेश करना। वसन्त ने इस बात को एक चुनौती के रूप में लिया और सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड संगीत देकर फ़िल्म को अमर बना दिया। इसी तरह वर्ष १९७४ में फ़िल्म निर्माता गुलज़ार बिना किसी गानों के फ़िल्म “अचानक” का निर्माण कर रहे थे और वसन्त देसाई से बैकग्राउंड म्यूजिक देने की पेशकश की और इस बार भी वसन्त कसौटी पर खरे उतरे और फ़िल्म के लिये श्रेष्ठ पार्श्व संगीत दिया। वसन्त ने हिन्दी फ़िल्मों के अलावा लगभग २० मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें सभी फ़िल्में सुपरहिट साबित हुई।
वसन्त देसाई के बारे में सभी जानते हैं कि वे वी.शांताराम के प्रिय संगीतकार थे। वी.शांताराम की फ़िल्में अपनी गुणवत्ता, निर्देशन, नृत्य और कलाकारों के साथ अपने मधुर गानों के लिये भी जानी जाती हैं। उनकी लगभग सभी फ़िल्मों में वसन्त देसाई ने संगीत दिया। वसन्त देसाई फ़िल्म ‘खूनी खंजर’ में अभिनय भी कर चुके थे और गाने भी गा चुके थे। बाद में वे संगीतकार गोविन्द राव टेम्बे (ताम्बे) के सहायक बने और कई फ़िल्मों में गोविन्द राव के साथ संगीत दिया। बाद में इनमें छिपी संगीत प्रतिभा को शांताराम जी ने पहचाना और अपनी फ़िल्मों में संगीत देने की जिम्मेदारी सौंपी और वसन्त देसाई ने इस काम को बखूबी निभाय़ा और राजकमल की फ़िल्मों को अमर कर दिया।
फ़िल्म ‘जनक झनक पायल बाजे’ के ‘नैन सो नैन नाही मिलाओ….’ गीत को वसन्त देसाई ने राग मालगुंजी में ढ़ाला था। इस फ़िल्म में लता मंगेशकर ने कई गीत गाये, उनमें से प्रमुख है- ‘मेरे ए दिल बता’, ‘प्यार तूने किया पाई मैने सज़ा’, ‘सैंया जाओ जाओ तोसे नांही बोलूं’, ‘जो तुम तोड़ो पिया मैं नाहीं तोड़ूं’ आदि थे। चूंकि यह फ़िल्म ही संगीत/नृत्य के विषय पर बनी है तो इसमें संगीत तो बढ़िया होना ही था। साथ ही इस फ़िल्म का विशेष आकर्षण थे, सुप्रसिद्ध नृत्यकार गोपीकृष्ण- जिन्होंने एक नायक के रूप में इस फ़िल्म में अभिनय भी किया है।
वसन्त देसाई ने ‘दो आँखे बारह हाथ’, ‘तीन बत्ती चार रास्ता’, ‘डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’, ‘सैरन्ध्री’, ‘तूफान और दिया’ आदि कुल ४५ फ़िल्मों में संगीत दिया।