November 21, 2024

ग़दर पार्टी पराधीन भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से बना एक संगठन था। इसे अमेरिका और कनाडा के भारतीयों ने १० मई, १९१३ में बनाया था। इसे प्रशान्त तट का हिन्दी संघ भी कहा जाता था। यह पार्टी “हिन्दुस्तान ग़दर” नाम से एक पत्र भी निकालती थी जो उर्दू और पंजाबी में छपता था। इस संगठन ने भारत को अनेक महान क्रांतिकारी दिए। ग़दर पार्टी के महान नेताओं सोहन सिंह भाकना, करतार सिंह सराभा, लाला हरदयाल आदि ने जो कार्य किये। इसी पार्टी ने भगत सिंह और उन जैसे अन्य क्रांतिकारियों को कालांतर में देश की आजादी की लड़ाई लड़ने और मरने के लिए उत्प्रेरित किया। पहले महायुद्ध के छिड़ते ही जब भारत के अन्य दल अंग्रेज़ों को सहयोग दे रहे थे गदर पार्टी के लोगों ने अंग्रेजी राज के विरूध्द जंग घोषित कर दी। इसी गदर पार्टी के अन्य आधिकारिक एवं सक्रिय सदस्यों में रास बिहारी बोस, बर्कतुल्लाह, सेठ हुसैन रहीम, और विष्णु गणेश पिंगले आदि नामों में से एक थे….

तारकनाथ दास !

तारकनाथ दास ब्रिटिश साम्राज्य के कट्टर विरोधी क्रांतिकारी और अंतर्राष्ट्रवादी विद्वान थे। वे उत्तरी अमेरिका के पश्चमी तट पर रहने वाले अग्रणी आप्रवासी थे। वे अपनी भावी योजनाओ की चर्चा टॉल्स्टॉय के साथ किया करते थे। जबकि दूसरी ओर वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष में एशियाई व भारतीय आप्रवासियों को सुनियोजित ढंग से तैयार भी कर रहे थे। श्री दास कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे और साथ ही कई अन्य विश्वविद्यालयों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत थे। आइए आज हम श्री तारकनाथ दास के भुला दिए गए इतिहास को फिर से याद करते हैं…

तारक का जन्म १५ जून, १८८४ को पश्चिम बंगाल के २४ परगना जिले के कंचरापाड़ा के करीब मंजूपाड़ा में हुआ था। वे एक मध्यम-वर्गीय परिवार से थे, उनके पिता कालीमोहन कलकत्ता के केन्द्रीय टेलीग्राफ ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करते थे। अपने मेधावी छात्र के पढ़ने-लिखने की विशिष्ट योग्यता को देखकर उनके प्रधानाध्यापक ने उन्हें देशभक्ति के विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। सोलह साल के इस छात्र द्वारा लिखे निबंध की गुणवत्ता से प्रभावित हो कर उपस्थित जजों में से एक बैरिस्टर पी. मिटर जो अनुशीलन समिति के संस्थापक थे, ने सहयोगी सतीश चंद्र बसु से इन्हें भर्ती करने के लिए कहा। वर्ष १९०१ के प्रवेश परीक्षा में उच्च नम्बर के साथ पास होने के बाद तारक कलकत्ता के लिए रवाना हुए और विश्वविद्यालय अध्ययन के लिए प्रसिद्ध जेनरल असेम्बली के संस्थान (वर्तमान में स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में भर्ती हुए।

देशभक्ति…

उन्हें अपनी गुप्त देशभक्ति गतिविधि में उन्हें अपनी बड़ी बहन गिरिजा से पूरा-पूरा सहयोग प्राप्त हुआ था। बंगाली समाज के उत्साह को बढ़ावा देने के क्रम में शिवाजी के अलावा एक महानतम बंगाली नायक राजा सीताराम राय के उपलब्धियों की स्मृति में एक त्योहार की शुरूआत की गयी। वर्ष १९०६ के प्रारंभिक महीनों में, बंगाल की पूर्व राजधानी जेसोर के मोहम्मदपुर में सीताराम उत्सव की अध्यक्षता करने के लिए जब बाघा जतिन या जतिंद्र नाथ मुखर्जी को आमंत्रित किया गया तो उनके साथ तारक भी इसमें शामिल हुए। इस अवसर पर, एक गुप्त बैठक का आयोजन किया गया जिसमें तारक, श्रीश चंद्र सेन, सत्येन्द्र सेन और अधर चन्द्र लस्कर सहित जतिन भी उपस्थित थे: सभी को एक के बाद एक विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाना था। १९५२ तक उस गुप्त बैठक के उद्देश्य के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी, जब बातचीत के दौरान तारक ने इसके बारे में बताया। विशिष्ट उच्च शिक्षा के साथ, उन्हें सैन्य प्रशिक्षण और विस्फोटकों का ज्ञान प्राप्त करना था। उन्होंने विशेष रूप से भारत की स्वतंत्रता के फैसले के पक्ष में स्वतन्त्र पश्चिमी देशों के लोगों के बीच सहानुभूति का वातावरण बनाने का आग्रह किया।

विदेश गमन…

पुलिस के पीछे लग जाने पर युवा तारकनाथ वर्ष १९०५ में साधु का वेश बनाकर ‘तारक ब्रह्मचारी’ के नाम से जापान चले गए। एक वर्ष वहाँ रहकर फिर अमेरिका में ‘सेन फ़्राँसिस्को’ पहुँचे। यहाँ उन्होंने भारत में अंग्रेज़ों के अत्याचारों से विश्व जनमत को परिचित कराने के लिए ‘फ़्री हिन्दुस्तान’ नामक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने ‘ग़दर पार्टी’ संगठित करने में लाला हरदयाल आदि की भी सहायता की। पत्रकारिता तथा अन्य राजनीतिक गतिविधियों के साथ उन्होंने अपना छूटा हुआ अध्ययन भी आरंभ किया और ‘वाशिंगटन यूनिवर्सिटी’ से एम.ए. और ‘जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी’ से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

सज़ा…

प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने पर वे शोध-कार्य के बहाने जर्मनी आ गए और वहाँ से भारत में ‘अनुशीलन पार्टी’ के अपने साथियों के लिए हथियार भेजने का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप और एशिया के अनेक देशों की यात्रा की। बाद में जब वे अमेरिका पहुँचे तो उनकी गतिविधियों की सूचना अमेरिका को भी हो गई। इस पर तारकनाथ दास पर अमेरिका में मुकदमा चला और उन्हें २२ महीने की क़ैद की सज़ा भोगनी पड़ी।

संस्थाओं की स्थापना…

इसके बाद तारकनाथ दास ने अपना ध्यान ऐसी संस्थाएँ स्थापित करने की ओर लगाया, जो भारत से बाहर जाने वाले विद्यार्थियों की सहायता करें। इंडिया इंस्टिट्यूट और कोलम्बिया का ‘तारकनाथ दास फ़ाउंडेशन’ दो ऐसी संस्थाएं अस्तित्व में आईं। वे कुछ समय तक कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर भी रहे। लम्बे अंतराल के बाद १९५२ में वे भारत आए और कोलकाता में ‘विवेकानंद सोसाइटी’ की स्थापना की।

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