‘लाहौर षड्यंत्र केस’ नाम कितना अव्यवहारिक और अमर्यादित सा लगता है। यह नाम अंग्रेजों द्वारा दिया हुआ है, जबकि आजादी के बाद इसका नाम लाहौर क्रांति अथवा कोई मर्यादित नाम से संबोधित करना चाहिए था। मगर क्या करें अंग्रेज चले गए अंग्रेजी और अंग्रेजियत यहीं रह गई। इस क्रांति पर अध्ययन करने पर एक नाम सामने आया। बलराज भल्ला; इस केस में बलराज भल्ला पर मुकदमा चला था और कठोर करावास की सज़ा उन्हें दी गई थी।
परिचय…
क्रांतिकारी बलराज भल्ला का जन्म १० जून, १८८८ ई. को पंजाब के गुजरांवाला ज़िले में हुआ था। उनके पिताजी महात्मा हंसराज जी थे, जो एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और डी.ए.वी. कॉलेज, लाहौर के प्रथम प्रधानाचार्य थे।
बलराज भल्ला ने वर्ष १९११ ई. में एम.ए. की परीक्षा पास की थी, परंतु रासबिहारी बोस और खुदीराम बोस आदि के प्रभाव से वे छोटी उम्र में ही क्रांतिकारी आंदोलन में सम्मिलित हो गए थे। इस कारण उनकी विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ वापस ले ली गईं।
बलराज बड़े साहसी थे और बड़े से बड़ा खतरा उठाने के लिए तैयार रहते थे। उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता के पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए साम्राज्यवाद के कुछ प्रतिनिधियों की जान लेने या सरकारी बैंकों को लूटने में कोई बुराई नहीं है।
क्रांति…
वाइसराय की गाड़ी पर बम फेंकने के अभियोग में वर्ष १९१९ में बलराज भल्ला को तीन वर्ष की सज़ा हुई थी। तथा दूसरे ‘लाहौर केस’ में भी उन पर मुकदमा चला था और कठोर करावास की सज़ा उन्हें दी गई थी। बलराज भल्ला भारत के ही प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपतराय के अनुयायी थे। अपने कार्यों के लिए सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से बलराज भल्ला ने एक बार गुप्त रूप से जर्मनी की भी यात्रा की थी।
देहांत…
जीवन के अंतिम दिनों में बलराज भल्ला का राजनीतिक हिंसा पर से विश्वास उठ गया और वे महात्मा गाँधी के अहिंसक मार्ग के अनुयायी बन गए थे। और उसके कुछ ही दिनों बाद यानी २६ अक्टूबर, १९५६ ई. को उनका देहांत हो गया।