स्वतंत्रता के समय भारत में ५६२ देसी रियासतें थीं। जिनका क्षेत्रफल भारत का ४० प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिए। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन राज्यों को छोड़कर शेष सभी राजवाड़ो ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ सौराष्ट्र के पास एक छोटी सी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी। वहाँ के नवाब ने १५ अगस्त, १९४७ को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत में विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और ९ नवम्बर, १९४७ को जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। फरवरी १९४८ में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा। हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे। अन्ततः भारतीय सेना १३ सितंबर, १९४८ को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर १९४८ में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मगर नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी। ५ अगस्त, २०१९ को तत्कालिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के संयुक्त प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का भारत को अखण्ड बनाने का सपना साकार हुआ। ३१ अक्टूबर, २०१९ को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल….
पटेल का जन्म ३१ अक्टूबर, १८७५ को नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार) जाति में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडवा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का पहला और बड़ा योगदान १९१८ में खेड़ा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेड़ा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
बारडोली सत्याग्रह…
बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष १९२८ को गुजरात में हुआ था, जो एक प्रमुख किसान आंदोलन था। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर २२ प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर ६.०३ प्रतिशत कर दिया।
इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा, ‘इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।’ कालांतर में देश स्वतंत्र हुआ।
स्वतंत्रता के उपरांत…
यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ सरदार पटेल के पक्ष में थीं, परंतु गांधीजी की इच्छा का आदर करते हुए सरदार ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने को दूर रखा। उन्हें गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया। परंतु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी। गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये कर के दिखाया भी। सिर्फ हैदराबाद स्टेट के आपरेशन पोलो के लिये उन्हें सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। १५ दिसंबर, १९५० में उनका देहान्त हो गया, जिसका फायदा नेहरू को हुआ, क्योंकि पार्टी में उनका विरोध करने वाला अब कोई नहीं रह गया था।
लेखनी…
निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार पटेल को स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का अवकाश नहीं मिला, परंतु उनके लिखे पत्रों, टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिये गये व्याख्यानों के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है, जिनका संकलन विविध संकलनों में प्रकाशित होते रहे हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं। वर्ष १९४५ से १९५० तक की समयावधि के इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से १० खंडों में प्रकाशन हुआ था। इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ, जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गये अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं। विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित कर अनेक पुस्तकें भी तैयार की गयी हैं। उनके समग्र उपलब्ध साहित्य का विवरण निम्नवत है…
हिन्दी में…
१. सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (१९४५-१९५०) – दो खंडों में, संपादक – वी० शंकर, प्रथम संस्करण-१९७६ (नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
२. सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (१९१८-१९५०) – दो खंडों में, संपादक – गणेश मा० नांदुरकर, प्रथम संस्करण-१९८१ (वितरक- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
३. भारत विभाजन,
४. गांधी, नेहरू, सुभाष,
५. आर्थिक एवं विदेश नीति,
६. मुसलमान और शरणार्थी,
७. कश्मीर और हैदराबाद (सभी प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली)।
English….
1. Sardar Patel’s correspondence, 1945-50. (In 10 Volumes), Edited by Durga Das [Navajivan Pub. House, Ahmedabad.]
2. The Collected Works of Sardar Vallabhbhai Patel (In 15 Volumes), Ed. By Dr. P.N. Chopra & Prabha Chopra [Konark Publishers PVT LTD, Delhi]
सम्मान…
१. अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा गया है।
२. गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय।
३. वर्ष १९९१ में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित।
४. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी… इसकी ऊँचाई २४० मीटर है, जिसमें ५८ मीटर का आधार है। मूर्ति की ऊँचाई १८२ मीटर है, जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊँची है। ३१ अक्टूबर, २०१३ को सरदार वल्लभ भाई पटेल की १३७वीं जयंती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया। यहाँ लौह से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम ‘एकता की मूर्ति’ (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है। प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप ‘साधू बेट’ पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है।
वर्ष २०१८ में तैयार इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी ने ३१ अक्टूबर २०१८ को राष्ट्र को समर्पित किया। यह प्रतिमा ५ वर्षों में लगभग ३००० करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है।