October 12, 2024

स्वतंत्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए, हथियार खरिदने के साथ ही साथ अन्य कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक गोलाबारूद इकट्ठा करने के लिए, हिन्दुस्तानी सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सभी क्रान्तिकारियों ने शाहजहाँपुर में ८ अगस्त, १९२५ को एक बैठक की। एक लम्बी वार्ता के पश्चात् सरकारी खजाने से लदी ट्रेन को लूटने का कार्यक्रम बना। ९ अगस्त,१९२५ को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में मन्मथनाथ गुप्त, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, शचीन्द्रनाथ बख्शी, चन्द्रशेखर आज़ाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुरारी शर्मा, मुकुन्‍दी लाल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ ने मिलकर लखनऊ के निकट काकोरी में रेलगाड़ी में जा रहा ब्रितानी सरकार का खजाना लूट लिया।

रेलगाडी के लूटे जाने के एक माह बाद भी किसी भी लुटेरे की गिरफ़्तारी नहीं हो सकी। यद्यपि ब्रिटेन सरकार ने एक विस्तृत जाँच का जाल आरम्भ कर दिया था। २६ अक्टूबर, १९२५ की एक सुबह, बिस्मिल को पुलिस ने पकड़ लिया और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ अकेले थे जिनका पुलिस कोई सुराख नहीं लगा सकी। वो छुपते हुये बिहार से बनारस चले गये, जहाँ उन्होंने दस माह तक एक अभियांत्रिकी कंपनी में काम किया। उन्होंने अभियान्त्रिकी के आगे के अध्ययन के लिए विदेश में जाना चाहते थे जिससे स्वतंत्रता की लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सके और वो देश छोड़ने के लिए दिल्ली चले गये। उन्होंने अपने एक पठान दोस्त की सहायता ली जो पहले उनका सहपाठी रह चुका था। दोस्त ने उन्हें धोखा देते हुये उनका ठिकाना पुलिस को बता दिया और १७ जुलाई, १९२६ की सुबह पुलिस उनके घर आयी तथा उन्हें गिरफ्तार कर लिया। आज हम इन्हीं महान विभूति, क्रांतिकारी के पुरोधा और महान देश भक्त जनाब अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ उर्फ अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ या यूं कहें की खान साब की बात करेंगे।

अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ…

खान साब का जन्म २२ अक्टूबर, १९०० को शाहजहाँपुर के जनाब शफ़िक़ुल्लाह खान और मज़रुनिस्सा जी, जो एक मुस्लिम पठान परिवार के खैबर जनजाति में हुआ था। खान साब छः भाई बहनों में सबसे छोटे थे।

वर्ष १९२० की बात है, महात्मा गांधी ने भारत में ब्रितानी शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। लेकिन वर्ष वर्ष १९२२ में चौरी चौरा कांड के बाद उन्होंने आन्दोलन वापस ले लिया। जिससे उस समय के युवा वर्ग बेहद खिन्न हो गया जिसमे हमारे खान साब भी थे। इसके बाद खान साब ने समान विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानियों से मिलकर नया संगठन बनाने का निर्णय लिया और वर्ष १९२४ में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। यही वह संगठन था जिसने काकोरी में रेलगाड़ी के खजाने को लूटकर अंग्रेजी सरकार के घमंड को एवम भारतीय जनता की नींद को तोड़ा था। अब आगे…

कुर्बानी…

खान साब को फैज़ाबाद कारावस में रखा गया और उनके विरुद्ध मामले को आरम्भ किया गया। उनके भाई रियासतुल्लाह खान उनके कानूनी अधिवक्ता थे। अदालत ने काकोरी डकैती के मामले में बिस्मिल सहित खान साब, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई। १९ दिसम्बर, १९२७ को वह काला दिन भी आ गया जब फ़ैज़ाबाद कारावास में उन्हें फ़ांसी दी गयी।

कहने को तो इतिहास इसे सजा के तौर पर देखता है मगर उनकी देशभक्ति, क्रान्तिकारी व्यक्तित्व, उनका देशप्रेम, स्पष्ट सोच, अडिग साहस, दृढ़ निश्चय और निष्ठा के कारण लोगों के लिए वो शहीद माने गये।

About Author

Leave a Reply