भारत की परमाणु बम परियोजना
भारत में परमाणु बम बनाने के लिए बुनियादी सुविधाओं और संबंधित तकनीकों पर शोध के निर्माण की दिशा में प्रयास द्वितीय विश्व युद्ध के भयानक त्रासदी को देखते हुए शुरू किया गया। भारत में परमाणु कार्यक्रम वर्ष १९४४ में आरंभ हुआ माना जाता है जब परमाणु भौतिकविद् होमी भाभा ने परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रति भारतीय कांग्रेस को राजी करना शुरू किया। और उसके एक साल बाद ही उन्होंने टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) की स्थापना की।
वर्ष १९५० के दशक में प्रारंभिक अध्ययन…
बीएआरसी में प्लूटोनियम और अन्य बम घटकों के उत्पादन व विकसित की योजना थी। वर्ष १९६२ में, भारत और चीन विवादित उत्तरी मोर्चे पर संघर्ष में लग गए और वर्ष १९६४ के चीनी परमाणु परीक्षण से भारत ने अपने आप को कमतर महसूस किया। परंतु जब विक्रम साराभाई इसके प्रमुख बने और वर्ष १९६५ में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसमें कम रुचि दिखाई तो परमाणु योजना का सैन्यकरण धीमा हो गया।
इंदिरा गांधी और प्रथम परमाणु परीक्षण…
जब इंदिरा गांधी वर्ष १९६६ में प्रधानमंत्री बनीं व भौतिक विज्ञानी राजा रमन्ना के प्रयासों में शामिल होने पर परमाणु कार्यक्रम समेकित (कंसोलिडेट) किया गया। चीन के द्वारा एक और परमाणु परीक्षण करने के कारण, मजबूरन वर्ष १९६७ में परमाणु हथियारों के निर्माण की ओर भारत को भी इस और अग्रसर होने का निर्णय लेना पड़ा। जिसका परिणाम वर्ष १९७४ में भारत का अपना पहला परमाणु परीक्षण ‘मुस्कुराते बुद्ध’ सफल आयोजन किया गया।
मुस्कुराते बुद्ध के बाद…
दुनिया की प्रमुख परमाणु शक्तियों ने भारत और पाकिस्तान, जो भारत की चुनौती को पूरा करने के लिए होड़ लगा रहा था, पर अनेक तकनीकी प्रतिबन्ध लगाये। परमाणु कार्यक्रम ने वर्षों तक साख और स्वदेशी संसाधनों की कमी तथा आयातित प्रौद्योगिकी और तकनीकी सहायता पर निर्भर रहने के कारण संघर्ष किया। आईएईए में, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि भारत के परमाणु कार्यक्रम सैन्यकरण के लिए नहीं है हालाँकि हाइड्रोजन बम के डिजाइन पर प्रारंभिक काम के लिए उनके द्वारा अनुमति दे दी गई थी।
वर्ष १९७५ में देश में आपातकाल लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के पतन के परिणामस्वरूप, परमाणु कार्यक्रम राजनीतिक नेतृत्व और बुनियादी प्रबंधन के आभाव के साथ छोड़ दिया गया था। हाइड्रोजन बम के डिजाईन का काम एम. श्रीनिवासन, एक यांत्रिक इंजीनियर के तहत जारी रखा गया पर प्रगति धीमी थी। परमाणु कार्यक्रम को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जो शांति की वकालत करने के लिए प्रसिद्ध थे की ओर से कम ध्यान दिया गया। वर्ष १९७८ में प्रधानमंत्री देसाई ने भौतिक विज्ञानी रमन्ना का तबादला भारतीय रक्षा मंत्रालय में किया और उनकी सरकार में परमाणु कार्यक्रम ने वांछनीय दर से बढ़ना जारी रखा।
परेशान करने वाली खबर…
भारत के परमाणु कार्यक्रम के विपरीत, पाकिस्तान का परमाणु बम कार्यक्रम अमेरिका के मैनहट्टन परियोजना के लिए समान था, यह कार्यक्रम नागरिक वैज्ञानिकों के साथ सैन्य निरीक्षण के तहत था। पाकिस्तानी परमाणु बम कार्यक्रम अच्छी तरह से वित्त पोषित था; भारत को एहसास हुआ कि पाकिस्तान संभवतः दो साल में अपनी परियोजना में सफल हो जायेगा।
१९८० का आम चुनाव…
इंदिरा गांधी की वापसी तो चिह्नित किया और परमाणु कार्यक्रम की गतिशीलता में तेजी आ गई। सरकार की ओर अन्य कोई परमाणु परीक्षण करने से इनकार किया जाता रहा पर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्य को जारी रखा है तो परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाना जारी रखा गया। हाइड्रोजन बम की दिशा में शुरुआती कार्य के साथ ही मिसाइल कार्यक्रम का भी शुभारंभ दिवंगत राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के अंतर्गत शुरू हुआ, जो तब एक एयरोस्पेस इंजीनियर थे।
भारत ने अपना पहला सफल परमाणु परीक्षण १८ मई, १९७४ को किया था। परंतु उस समय भारत सरकार ने यह घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है। बाद में ११ और १३ मई, १९९८ को पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये और भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी २० मई को बुद्ध-स्थल पहुंचे। वही प्रधानमंत्री ने देश को एक नया नारा दिया ‘जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान’। सभी देशवासी प्रधान मंत्री के साथ-साथ गर्व से भर उठे। इन परीक्षणों का असर परमाणु संपन्न देशों पर बहूत अधिक हूआ। अमरीका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन आदि देशों ने भारत को आर्थिक सहायता न देने की धमकी भी दी। परंतु भारत इन धमकियों के सामने नहीं झुका।