परशुराम त्र्यंबक कुलकर्णी जिन्हें परशुराम पंत प्रतिनिधि के नाम से जाना जाता है। वे मराठा साम्राज्य के पांचवे पेशवा थे, जो बहिरोजी पिंगले के बाद इस पद पर आसीन हुए थे। उन्होंने राजाराम प्रथम और महारानी ताराबाई के शासनकाल के दौरान मुख्य प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। वे अपने कार्यों के शुरआती दिनों में शिवाजी महाराज के दरबार में एक संचायक और दुभाषिया हुआ करते थे। प्रतिनिधि की उपाधि उन्हें वर्ष १६९८ में शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम द्वारा प्रदान की गई थी।
परिचय…
परशुराम त्र्यंबक का जन्म वर्ष १६६० में सतारा के कन्हाई गांव में एक देशस्थ ब्राह्मण व पवित्र ग्राम अधिकारी त्र्यंबक कृष्ण कन्हाई के यहां हुआ था।
कार्य…
परशुराम ने अपने जीवन की शुरुआत लिपिक के रूप में की थी, परंतु राजाराम के शासनकाल के दौरान उन्होंने अपनी क्षमताओं, वीरता और कार्य निपुणता की वजह से मुगल सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इसके अलावा उन्होंने सतारा, पन्हाला और अन्य किलों की वसूली और मराठा शक्ति को फिर से स्थापित किया। उनका परिवार पूर्व से ही समृद्ध था, लेकिन उसकी मेधावी सेवाओं को देखते हुए राजाराम ने उन्हें प्रह्लाद नीरजी की मृत्यु के बाद प्रतिनिधि की उपाधि से सम्मानित किया। महारानी ताराबाई ने परशुराम त्र्यंबक को प्रतिनिधि के रूप में बरकरार रखा, जहां वे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक रहे।
और अंत में…
परशुराम त्र्यंबक पंत प्रतिनिधि की मृत्यु वर्ष १७१८ में सतारा के पास माहुली में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके तीसरे पुत्र श्रीपतराव पंत प्रतिनिधि के पद पर आसीन हुए तथा पहले बेटे कृष्णराव पंत को विशालगढ़ एस्टेट ने अपना प्रतिनिधि बनाया एवं बालाजी विश्वनाथ भट छठे पेशवा के रूप में नियुक्त हुए। भट परिवार के वंशानुगत पेशवाओं की श्रृंखला में से पहला रूप में यहीं से शुरू हुआ।
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