FB_IMG_1660714675618

कान लगा, सुन तो जरा
ये खामोशी क्या कहती है?
कुछ उलझनों के भाव हैं, इनमें
तो कुछ पछताओं के भी हैं

कुछ खुशी की थिरकन है इनमें तो
कुछ दुख के बोझ लिए हुए भी हैं
कुछ बतियाती आंखें हैं इनकी तो
कहीं लरजते होठ सिले हुए से हैं

कभी बाल झटकते हुए, तो
कभी हाथ पटकते हुए
एक बार सुन ना, सुन तो सही
ये खामोशी सच में क्या कहती है

कभी आसमां को ताकते हुए, तो
कभी गिन लिए उसके सारे तारे
कभी टहलते नदी के किनारे
कभी बदल लिए अपने राह सारे

ध्यान लगा सुन जरा और बता कि
ये खामोशी क्या कहती है?
मगर जाने दे कुछ मत बता,
ये खामोशी बहुत कुछ कहती है

क्योंकि वह आत्मा सरीखी है,
जो सीधे हृदय को स्पर्श करती है
वह खुशी में बस मुस्कुरा देती है
और दुख को यूं ही छुपा जाती है

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *