काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर के दर्शन करने और पास में कलकल बहती पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद सरस्वती, गोस्वामी तुलसीदास आदि संतों का आगमन हुआ है। यहीं पर एकनाथ जी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशी नरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।
शिव स्थली…
काशी स्थित भगवान शिव का यह मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थल है। जब माता पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। देवी पार्वती ने एक दिन भगवना शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा। भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया। सत्ययुग में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था।
इतिहास…
वर्ष ११९४ में मुहम्मद गौरी ने इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष १४४७ में पुनः इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् १७८० में करवाया गया था। कालांतर में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा वर्ष १८५३ में १००० कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया।
मान्यता…
प्रलयकाल में भी श्री काशी विश्वनाथ, विश्वेश्वर का यह प्राचीन मंदिर कभी लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यही भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्री वशिष्ठ जी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।
महिमा…
सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं…
१. दशाश्वेमघ घाट
२. लोलार्ककुण्ड
३. बिन्दुमाधव
४. केशव और
५. मणिकर्णिका
इन्हीं से युक्त होकर यह क्षेत्र अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास
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