April 18, 2024

काशी भोले बाबा की नगरी है, इसे किसी साक्ष्य की कोई आवश्यकता नहीं है, फिर भी साक्ष्य की बात की जाए तो इसके लिए काशी में शिवजी के प्राचीन मंदिर की खोज के लिए सर्वे चल रहा है, क्योंकि यह मान्यता है कि प्राचीन काल में यहां एक बहुत ही विशालकाय मंदिर था। इसे मध्यकाल में तोड़कर एक मस्जिद बना दिया गया। आईए हम आज काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के प्राचीन से लेकर आज तक के इतिहास को जानते हैं…

१. पुराणों के अनुसार आदिकाल से ही काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है।

२. ईसा पूर्व ११वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा उसे सम्राट विक्रमादित्य ने भी अपने शासनकाल में एक बार पुन: जीर्णोद्धार करवाया।

३. वर्ष ११९४ में काशी विश्वनाथ के भव्य मंदिर को मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।

४. वर्ष १४४७ में मंदिर को काशी के स्थानीय लोगों ने मिलकर पुनः नवनिर्माण कराया परंतु जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह द्वारा इसे पुनः तोड़ दिया गया और उसकी जगह मस्जिद बना दी गई। हालांकि हर बार की तरह इसपर भी इतिहासकारों में मतभेद है।

५. वर्ष १५८५ में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।

६. वर्ष १६३२ में मुगल शासक शाहजहां के आदेश पर मंदिर को तोड़ने के लिए सेना भेज दी गई, परंतु सेना को हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से सेना विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, परंतु काशी के ६३ अन्य मंदिरों को तोड़ दिया।

७. १८ अप्रैल, १६६९ को एक बार पुनः एक अन्य मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह आदेश एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। एलपी शर्मा की पुस्तक ‘मध्यकालीन भारत’ में इस ध्वंस का वर्णन है। साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में भी इसके संकेत मिलते हैं।

८. २ सितंबर, १६६९ को मंदिर को तोड़ने के बाद औरंगजेब को मंदिर तोड़ने के कार्य को पूरा होने की सूचना दी गई और तब जाकर ज्ञानवापी परिसर में मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनाई गई।

९. वर्ष १७३५ में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर ने ज्ञानवापी परिसर के निकट ही काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना करवाई।

१०. वर्ष १८०९ में ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद पहली बार गरमाया, जब हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद को उन्हें सौंपने की मांग की।

११. ३० दिसंबर, १८१० को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मिस्टर वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।

१२. वर्ष १८२९-३० में ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने इसी मंदिर में ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां नंदी महाराज की विशाल प्रतिमा स्थापित करवाई।

१३. वर्ष १८८३-८४ को राजस्व दस्तावेजों में ज्ञानवापी मस्जिद का पहली बार जिक्र तब आया जब इसे जामा मस्जिद ज्ञानवापी के तौर पर दर्ज किया गया।

१४. वर्ष १९३६ में दायर एक मुकदमे पर वर्ष १९३७ के फैसले में ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर स्वीकार कर लिया गया।

१५. वर्ष १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् ने कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के साथ मिलकर ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर मंदिर बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया।

१६. वर्ष १९९१ में हिन्दू पक्ष की ओर से हरिहर पांडेय, सोमनाथ व्यास और प्रोफेसर रामरंग शर्मा ने मस्जिद और संपूर्ण परिसर में सर्वेक्षण और उपासना के लिए अदालत में एक याचिका दायर की। इसके बाद संसद ने उपासना स्थल कानून बनाया। तब आदेश दिया कि १५ अगस्त, १९४७ से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे में बदला नहीं जा सकता।

१७. वर्ष १९९३ में विवाद के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।

१८. वर्ष १९९८ में कोर्ट ने मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी, जिसे मस्जिद प्रबंधन समिति ने इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद कोर्ट द्वारा सर्वे की अनुमति रद्द कर दी गई।

१९. वर्ष २०१८ को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की वैधता छह माह के लिए बताई।

२०. वर्ष २०१९ को वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू की गई।

२१. वर्ष २०२१ में कुछ महिलाओं द्वारा कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसमें मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की आज्ञा मांगी।

२२. १२ मई, २०२२ को वाराणसी कोर्ट की एक बेंच ने ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफ़ी और सर्वे करने का आदेश दिया था।

२२. कोर्ट के आदेश के अनुसार लगातार तीन दिनों तक यानी १४, १५ और १६ मई, २०२२ तक चले ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा हुआ।

अपनी बात…

बीबीसी के हवाले से, सर्वे समाप्त होते ही हिंदू पक्ष के एक वकील ने बाहर आकर दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद में एक जगह १२ फ़ुट का शिवलिंग मिला है और इसके अलावा तालाब में कई और अहम साक्ष्य भी मिले हैं। इसके बाद शिवलिंग मिलने के दावे पर वाराणसी के ज़िलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने कहा, “अंदर क्या दिखा इसकी कोई जानकारी किसी भी पक्ष द्वारा बाहर नहीं दी गई है। तो किसी भी उन्माद के आधार पर नारे लगने का दावा झूठ है।” उन्होंने आगे कहा, “अंदर मौजूद सभी पक्षों को ये हिदायत दी गई थी कि १७ मई को कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी जाएगी और तब तक किसी को कोई जानकारी सार्वजनिक करने की इजाज़त नहीं है। लेकिन किसी ने अपनी निजी इच्छा से कुछ बताने की कोशिश की है तो इसकी प्रामाणिकता कोई साबित नहीं कर सकता”

इसके बाद वकील हरिशंकर जैन ने स्थानीय अदालत में अर्ज़ी दायर करते हुए यह दावा किया कि कमीशन की कार्रवाई के दौरान ‘शिवलिंग’ मस्जिद कॉम्प्लेक्स के अंदर पाया गया है। अदालत को बताया गया कि यह बहुत महत्वपूर्ण साक्ष्य है, इसलिए सीआरपीएफ़ कमांडेंट को आदेश दिया जाए कि वो इसे सील कर दें। थोड़े समय बाद ही स्थानीय अदालत ने उस स्थान को तत्काल सील करने का आदेश दे दिया।

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर

ज्ञानवापी

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