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UBI Contest १०१
हिन्दी
कविता
विषय : बर्फीली नदी

आज वो नदी बेहद उदास है,
जो कभी चंचल मुस्कान लिए
कलकल, निश्चल सी बहती थी।

वो कभी पीतल मद्धम सी, तो
कभी सोना सी चमकती थी
शायद डर से जमी आज बर्फ थी

ऐसा भी लगता है कि आज वो
अपने में सिमटे, सकुचाए
सफेद चादर ओढ़े जैसे सोई है

उसके ऊपर ओस का आसमान
अपनी आगोश में लेने को उत्सुक
बांह पसारे वस्त्र बन यूं ही पड़ा था।

डरी हुई सहमी सी छुई-मुई को
अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य ने
जब देखा तो वह वहीं ठहर गया

मन का भाव छिपाए वो
अपनी जलन से जलता उसे पुनः
बहाने की हर कोशिश करने लगा

पहली लड़ाई ओस से थी
दूसरी कड़ाके ठंड के जोश से थी
यह देख बर्फ को भी पसीना आया

उसे पिघलना तो था ही सो
वह पिघला तो हलचल सी मची
नदी कलकल कर पुनः बहने लगी

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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