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भाग –२

 

पेरियार ने सच्ची रामायण लिखने से पूर्व अपनी पुस्तक के प्रस्तावना में जो लिखा है, वो सीधे सीधे आपके सम्मुख हम प्रस्तुत कर रहे हैं…

 

पुस्तक की प्रस्तावना…

रामायण किसी ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित नहीं है। यह एक कल्पना है। रामायण के अनुसार, राम न तो तमिल था और न ही तमिलनाडु का रहने वाला था। वह उत्तर भारतीय था। रावण लंका यानी दक्षिण यानी तमिलनाडु के राजा थे; जिनकी हत्या राम ने की। राम में तमिल-सभ्यता (कुरल संस्कृति) का लेश मात्र भी नहीं है। उसकी पत्नी सीता भी उत्तर भारतीय चरित्र की है। तमिल विशेषताओं से रहित है। वह उत्तरी भारत की रहने वाली थी। रामायण में तमिलनाडु के पुरुषों और महिलाओं को बंदर और राक्षस कहकर उनका उपहास किया गया है।

 

रामायण में जिस लड़ाई का वर्णन है, उसमें उत्तर का रहने वाला कोई भी (ब्राह्मण) या आर्य (देव) नहीं मारा गया। एक आर्य-पुत्र के बीमारी के कारण मर जाने की कीमत रामायण में एक शूद्र को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। वे सारे लोग, जो इस युद्ध में मारे गए; वे तमिल थे। जिन्हें राक्षस कहा गया।

 

रावण राम की पत्नी सीता को हर ले गया। क्योंकि, राम ने उसकी बहन ‘सूर्पनखा’ का अंग-भंग किया व उसका रूप बिगाड़ दिया था। रावण के इस काम के कारण लंका क्यों जलाई गई? लंका निवासी क्यों मारे गए? रामायण की कथा का उद्देश्य तमिलों को नीचा दिखाना है। तमिलनाडु में इस कथा के प्रति सम्मान जताना तमिल समुदाय और देश के आत्मसम्मान के लिए खतरनाक और अपमानजनक है। राम या सीता के चरित्र में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे दैवीय कहा जाए।

 

जिस तरह तथाकथित आजादी (१९४७) मिलने के बाद गोरे लोगों की मूर्तियों को हटा दिया गया और उनके नामों पर रखे गए स्थानों के नामों को मिटा दिया गया तथा उनकी जगह भारतीय नाम रख दिए गए। उसी तरह आर्य देवताओं और उनकी महत्ता बताने वाली हर बात को मिटा देना चाहिए; जो तमिलों के प्रति आदर और सम्मान की भावनाओं को आघात पहुंचाते हैं। हर तमिल, जिसकी नसों में शुद्ध द्रविड़ खून बहता है; उसको इसे अपना कर्तव्य समझकर ऐसा करने का शपथ लेनी है।

– पेरियार ई.वी. रामासामी

 

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