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विषय : आकर्षक
दिनाँक : १०/०१/२०२०

इस जहाँ में कोई तुमसा ना होगा,
माना ऐसी हो खूबसूरत तुम।
हर दिल तुझको पाना चाहे,
माना ऐसी हो आकर्षक तुम।

हजारों सर तेरी दर पर झुके होंगे,
कितने दिल यहां आकर टूटे होंगे।
मस्तानों की हम क्या बात करें,
बूढ़े भी तुझे देख आहें भरते होंगे।

पता-ठिकाना क्या है तेरा,
अब तक मैंने ना जाना है।
पता लगा तो बस इतना ही,
तुमने मुझको भी बुलवाया है।

आमंत्रण तो बहुत बड़ा है,
लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरी है।
सोच रहा हूँ क्यूँ तूने अब तक,
शादी की रस्म की ना पूरी है।

देखा नहीं अभी तक तुमको,
जो अब तक सुना जाना है।
जिद तुम्हारी बहुत बड़ी है,
बिन जाने भी यह माना है।

आकर्षण तुम्हारा बहुत बड़ा है,
लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरी है।
चाक बन भले कितना भी घूमूं,
इंतजार में बैठी घर में एक धुरी है।

वह अनुभूति मूर्ति की है,
वेद-ऋचाओं सी मंगलकारी।
ध्वनि हो तुम विश्वपटल की,
वो है हृदय संगीत सी प्यारी।

मनभावन होगा रूप तुम्हारा,
लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरी है।
कैसे सुनाऊँ हाल दिल के,
मेरी भाषा की सामर्थ्य न पूरी है।

नहीं अकेला हूँ अब इस जग में,
बंध नहीं सकता तेरे आकर्षण में।
मेरी दुनिया अलग सजी है,
बंध चुका हूँ जिसके बंधन में।

अब सिर्फ तुम्हीं बतलाओ,
कैसे आऊँ पास तुम्हारे।
तुम हो गर्म हवा का झोंका,
वो तो ठंडी पवन बहेरी है।

मेरे अन्दर गंगा का पावन जल है,
जी भर कर तुम कोशिश कर लो।
तन-मन पर मेरा पूर्ण नियंत्रण,
जीतने अपने आकर्षण फैला लो।

माना तेरे आकर्षण में उद्दीपन है,
लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरी है।
मेरी आस किए जो खड़ी है,
क्या साधना उसकी अभी अधूरी है।

अश्विनी राय ‘अरूण’

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