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सीटीबीटी पर बात करने से पूर्व हम वर्ष १९५४ में अमेरिका द्वारा किए गए १५ मेगाटन के हाइड्रोजन बम के परीक्षण पर बात करते हैं। इस परीक्षण का नतीजा इतना घातक था कि इस विस्‍फोट से निकले रेडियोऐक्टिव पदार्थों ने यहां के लोगों को बुरा हाल कर दिया। उस वक्‍त पूरे विश्व के अधिकार प्रभावशाली देशों में सिर्फ भारत के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ही भारतीय संसद में अमेरिका के इस परीक्षण की कड़ी निंदा की। उन्‍होंने कहा कि इस प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर तब तक रोक लगा देनी चाहिए, जब तक संयुक्‍त राष्‍ट्र में इस मुद्दे पर कोई संधि पेश नहीं की जाती।

क्या है सीटीबीटी ?…

सीटीबीटी यानी कॉम्प्रिहेंसिव टेस्‍ट बैन ट्रीटी (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि)। दुनिया भर के देशों के बीच एक ऐसा समझौता, जिसके जरिए विभिन्‍न राष्‍ट्रों को परमाणु परीक्षण करने से रोका जा सके।

भारत का रुख…

२० जून, १९९६ को भारत ने जिनेवा सम्मेलन में सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने से साफ इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं भारत के साथ साथ पाकिस्तान समेत कई अन्य देशों ने भी अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं है।

हस्ताक्षर नहीं करने की वजह…

जैसा कि हमने ऊपर ही कहा है कि १९५४ में अमेरिका के किए गए १५ मेगाटन के हाइड्रोजन बम के परीक्षण के नुकसान को देखते हुए भारत के तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री नेहरू द्वार कड़ी निंदा के नौ वर्ष बाद यानी वर्ष १९६३ में पार्शियल न्‍यूक्लियर टेस्‍ट बैन ट्रीटी (पीटीबीटी) पेश की गई। मगर आशा के अनुरूप परिणाम नहीं आने पर भारत ने वर्ष १९६८ में नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी का बहिष्‍कार कर दिया। भारत का यह मानना है कि इस संधि के बिंदु परमाणु संपन्‍नता को लेकर देशों के बीच भेदभाव करने वाले हैं। यही वजह है कि भारत ने अभी तक सीटीबीटी पर हस्‍ताक्षर नहीं किया है।

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