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बड़ी चाह थी कि जिंदगी
लहरा कर चलती रहे, मगर
हादसे ऐसे हुए जिंदगी में कि
हम भहरा कर गिर पड़े।

ऐसा नहीं था कि हम
एक बार में गिरे
और ऐसा भी नहीं था कि
हमें चलना नहीं आता था।

बस जिंदगी चलती रही
और हम इस खुसफहमी में
ठहरे रहे कि
ये सुबह ऐसे ही खिली रहेगी।

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’
महामंत्री, अखील भारतीय साहित्य परिषद्, न्यास
बक्सर ( बिहार)

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