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विषय : मजदूर
दिनाँक : ०९/०१/२०२०

जाता है परदेश कमाने
शायद उसको भी कुछ पाना है
हाथ में थैला लिए किस्मत विषैला
तन पर फटा कुर्ता और पाजामा है

क्या थैले में कुछ महंगा होगा
शायद रुपया और पैसा होगा
कुछ दिन शहर में कट जाएगा
फिर कोई काम मिल ही जाएगा

ढंग की कोई मजूरी मिल जाए
रोजी छोड़ नौकरी लग जाए
नगर देवता की क्या बात करें
गाँव के डिह तक को पूज आएगा

लग गई उसको बड़ी नौकरी
एक बंगले की फरमाईश थी
हाथ में पड़ गए बड़े बड़े छाले
पैरों में आज फट गई बिवाई थी

चमक उठी बंगले की रौनक
ऐसी मेहनत उसने दिखाई थी
उसकी आमदनी वही चवन्नी
जहाँ लाखों की कमाई थी

रवि सोम एक समाना
सर्दी गर्मी का ना कोई पैमाना
हर दिन, हर शाम उसको
हर काम है उसको कर जाना

कोई ले जाता उसको बुलाकर
कोई चला जाता धमकाकर
जब चाहे उससे काम ले लो
दो रुपए की चाय पिलाकर

रोटी क्या इतनी महंगी है
ये उसकी औरत बतालाएगी
बच्चे जिसके जब भूखे होते
पेट भरने को पानी वो पिलाएगी

वह आज बड़ा दुःखी है
औरत ने भेजी है एक फरियाद
सुन कर आँखें भर गई उसकी
गुड़िया की रोटी वाली बात

अश्विनी राय ‘अरूण’

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