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प्यार के छोटे बोल पर
रिश्ता निभाना आता है।
तेरे लिए कृपण रस्म को,
रिवाज में ढालना आता है।।

गैरों से कैसे मेल बढ़ाते हैं
तुम्हें ये अदा बेसक आती है
हमें ही नजरंदाज करते हो
यही अंदाज हमें सताती है

शायद और भी रस्म पाले होंगे
हमसे चुपचाप दूरियां बढ़ाने की
हमने भी एक रिवाज बनाया है
बिन शोर नजदीकियां बनाने की

दर्द देने होंगे, कुछ दर्द लेने होंगे
रस्म दुनिया के हमें तोड़ने होंगे
अपनों को भी शिकस्त देने होंगे
पाकर तुझे उन्हें फिर जोड़ने होंगे

बहुत दर्द भरे रस्म देखे हैं,
बहुत दर्द भरे इश्क देखें हैं
बंद कर इन रिवाजों की बात
हमने मश्क भरे अश्क देखे हैं

बड़े बड़े दर्द के बीच हमने
इश्क का रस्म निभाया है
बस तेरा ही इंतजार है, हमें
अपने अंदर बस्ती बसाया है

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’ 

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