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चित्रगुप्त पूजा दीपावली के बाद आने वाली भाई दूज के दिन यानी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। भगवान चित्रगुप्त का पूजन इस दिन लेखनी को साक्षी मानकर किया जाता है। भगवान चित्रगुप्त भाई दूज के दिन हमारे जीवन के बही·खाते लिखते हैं तथा पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं, जो कर्म हम जीवन भर करते हैं।
महत्व…
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वणिक वर्ग के लिए यह दिवस नवीन वर्ष का प्रारंभिक दिन होता है। अत: इस दिन नवीन बही-खातों या बहियों पर ‘श्री’ लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है, इसकी मान्यता यह है कि बस एक शुभ अक्षर ‘श्री’ ही काफी है। इसी दिन यमुना जी के पूजन भी किया जाता है। यदि बहन जो चचेरी, ममेरी, फुफेरी कोई भी हो, इस दिन अपने हाथ से भाई को भोजन कराए तो उसकी उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व माना गया है।
पूजन विधि…
१. इस दिन घर में भगवान चित्रगुप्त जी की तस्वीर न हो तो उनके प्रतीक एक कलश को स्थापित कर पूजन करें।
२. प्रथम दीपक जलाएं और श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करने के बाद भगवान चित्रगुप्त जी का पंचामृत स्नान, श्रृंगार, हवन, आरती तथा इसके साथ ही कलम-दवात का भी पूजन करें।
३. उसके बाद चंदन, हल्दी, रोली, अक्षत, पुष्प व धूप आदि से विधि-विधान से पूजन करें।
४. इसके बाद भगवान चित्रगुप्त को ऋतु फल/ पंचामृत या सुपारी का भोग लगाएं।
५. भगवान चित्रगुप्त की कृपा पाने के लिए, यमराज के आलेखक चित्रगुप्त जी की पूजा करते समय यह प्रार्थना बोलें…
प्रार्थना मंत्र…
मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।
जाप मंत्र…
ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः का १०८ बार जाप करना फलदायी रहता है।
आरती…
श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी।
पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी॥
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल अति सोहे।
श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे॥
भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला।
शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला॥
अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै।
कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे॥