साहित्यिक प्रतियोगिता : १.१९
दिनाँक : १९/११/१९
विषय : उत्साह
विनय राम की
हांथ जोड़ राम सागर से बोले
कर दो पार हमें क्यूँ बाधा हो
ना डूबाओगे बस ये वादा दो
गर इसमे भी कोई बाधा हो
तो दे दो बस सांत्वना
रक्खो अपने अहम तमाम
हम उसी से पार हो जाएँगे
सामने तेरे सदा सर झूकाएंगे
सागर वह भी कर न सका
आशीष राम की ले न सका
उलटे, गर्व से गरजने लगा
राम को लाचार समझने लगा
जब कृपा राम की छूटने लगे
अहम हृदय में गहराने लगे
किस्मत पर अंधेरा छाता है
अपना भला कहां भाता है
राम ने तब भीषण हुंकार किया
अपने क्रोध को विस्तार दिया
डगमग डगमग धरती डोले
श्रीराम कुपित हो कर बोले
सिंधु रूप बढ़ा कर रोक मुझे
हाँ, हाँ पयोधि अब रोक मुझे
संसार आज देखले,
हाँ नदिश मेरी बात समझले
तू भी मुझसे है
तेरी वारी भी मुझसे है
हे पारावार! लगा अकल
मुझसे ही है संसार सकल
मेरे धनुष ला लखन
नाप लूं आज इसके अहम
आज अहमी को सूखा दूँ
सकल संसार को ये बता दूँ
जग का सार मैं हूँ
उसका विस्तार भी मैं हूं
अमृत बहता है मुझसे
संहार भी झूलता है मुझसे
अश्विनी राय ‘अरूण’