April 11, 2025

इक घर खातिर मैने,

कितनों के घर उजाड़ दिए।

अरे थोड़ी बेईमानी की,
थोड़ी हेराफेरी की॥

कुछ पैसे इधर से कमाए,
कुछ पैसे उधर उड़ाए।
एक टुकड़े जमीन खातिर,
पैसे चाहे जिधर से आए॥

कुछ और घरो के दिए बुझाए,
नये बनते घर को रौशन करने को।
तक़दीर गर साथ देती
और बेइमानीयां करता घर सजाने को॥

एक दिन ऐसा भी आया,
निकल आए करम मेरे साँप बनकर।
पुराने घर को मैने गिराया था,
नया भी गिरा आज पाप बनकर॥

समय बदला था, सिंहासन बदल गए,
पुरानी बेईमानियां भी बदल गईं।
शायद किसी को घर बदलना था,
मेरे नये घर को उजाड़ कर॥

अश्विनी राय ‘अरुण’

About Author

Leave a Reply

RocketplayRocketplay casinoCasibom GirişJojobet GirişCasibom Giriş GüncelCasibom Giriş AdresiCandySpinzDafabet AppJeetwinRedbet SverigeViggoslotsCrazyBuzzer casinoCasibomJettbetKmsauto DownloadKmspico ActivatorSweet BonanzaCrazy TimeCrazy Time AppPlinko AppSugar rush