साप्ताहिक प्रतियोगिता : १.३
विषय : साक्षी भाव🙂
पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन,
जप-तप सभी हैं बाहरी उपक्रम।
लेकिन ‘साक्षी भाव’ दुनिया की,
सबसे सटीक और कारगर श्रम॥
पदार्थ, भाव और विचार से,
व्यक्ति का तादात्म्य समाप्त करे।
यह है अध्यात्म का राजपथ,
जो जीवन को साथ करे॥
सुख-दुःख में ये काम आता,
जीवन को यह दिशा दिखता।
देखने वाले को देखना ही श्रेष्ठ है,
उपनिषद् यह हमें बताता॥
साक्षी भाव है वेदों का सार,
उपनिषद् या उपनिषदों का सार।
गीता हो गीता का सार,
ध्यान में श्रेष्ठ है ‘साक्षी भाव’॥
साँसों के आवागमन को देखना,
विचारों के आने-जाने को देखना।
सुख दुःख के भाव को देखना,
इसमें देखने वाले को है देखना॥
साक्षी भाव पानी के समान है,
जो गंदगी को नीचे जमा देता है।
जैसे-जैसे साक्षी भाव गहराता है,
जल पूर्णत: साफ हो जाता है॥
देखना ही जीवन है,
अच्छे बुरे के कृत्य को।
सभी तरह का सम को,
होशपूर्ण प्रवीत को॥
देखना ही शुद्ध दर्शन है,
जिसमें भाव का व्यसन हो।
आपके और दृश्य के बीच,
विचार भाव की परत न हो॥
तर्क न हो वितर्क न हो,
कोई विश्लेषण न हो।
यह भी देखो की आप को,
बस कोई देखता ना हो॥
अश्विनी राय ‘अरूण’