विषय : क्रांति
दिनाँक : १५/०१/२०२०
बड़े गुमान में
वो फिरते हैं
जीते हुए जो हैं
उनको हक है
खुशियां मनाने का
अपनी जीत पर
मगर मैं भी आज
बेहद खुश हूँ
क्यूंकि कोई तो है
जो रो रहा है
मेरी हार पर
मैं भी यहाँ अकेला था
वो भी यहाँ अकेले थे
क्या अब सच में
हम यहाँ अकेले हैं
मेरा सच आज
मेरे साथ है
तुम्हारा सच आज
तुम्हारे साथ है
क्या हमारा सच
आज हमारे साथ है ?
कहां रुकना है
हमें क्या पता
कहां झुकना है
हमने नहीं सीखा
इक लड़ाई हारी है
मगर हिम्मत नहीं हारे
ना तो रुके हैं
ना तो हम थके हैं
बिगुल क्रांति की फूंकने का
हमने यह ठाना है
लहू जिगर का बहता रहे
मृत्यु तक ना रुकना है
अश्विनी राय ‘अरूण’