November 22, 2024

दिनांक : ०२/११/१९

शीर्षक : तलाश

उधेड़बुन में पड़ा
राह की तलाश में
पहाड़ की चोटी से
सागर की गहराई में

चलचला राहों पर
आँखे मींचे सांसे खींचे
घर छूटा बस्ती छूटी
आमिले अंजानी राहों में

हर वक्त नजरें चुराऊ
तो कभी खुद को छुपाऊ

चला आ रहा मेरे पीछे
साया कहता खुद को
अब अंधेरा कर रखा है
मैंने फिजाओं में

उधेड़बुन में पड़ा
राह की तलाश में
कल के झुठ से
आज की सच्चाई में

आँखों के झरोखे से देखता
दोष सहित या दोष रहित है
मृत्यु के आलिंगन से
जीवन की बेवफाई में

उधेड़बुन में पड़ा
लक्ष्य की तलाश में
नजर के धोखे से
मानव माया की परछाईं में।

अश्विनी राय ‘अरूण’

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