April 11, 2025

लबों पर हर बार खामोशी झूलती है,

लेकिन हर बात कहती हैं तुम्हारी आँखे

ये आसमां से भी गहरी तुम्हारी आखें
कभी शून्य को झांकती कभी बरसाती आखें

बरसे न गर कभी बादल
मगर बरस जाती तुम्हारी आँखे

छिपाए हैं कितने ही राज गहरे,
कभी यूँ ही सब कह देती तुम्हारी
आँखे।

ढूंढा करते हैं हम इनमे खुद को
कभी पढ़ ना पाए हम तुम्हारी आखें।

इनसे गुजरते हैं रास्ते दिलों के,
काश दे पातीं पनाह ये तुम्हारी आँखे।

कभी लगे गीत गाती सी ये,
तो कभी गीता की सार तुम्हारी आखें।

कुर्बान हुए हम इनपर, लेकिन
अपना ना समझ सकी ये तुम्हारी आखें।

अश्विनी राय अरुण

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