हिन्दी साहित्य के आदिकालीन कवि तथा पृथ्वीराज चौहान के परम् मित्र, जिन्होंने पृथ्वीराज रासो नामक प्रसिद्ध हिन्दी ग्रन्थ की रचना की थी, आज हम उस महान साहित्य साधक, धर्म परायण चंदबरदाई के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे…
जीवन…
चंदबरदाई के जीवनी के बारे में अगर जानना हो तो भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के बारे में जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि इनका जीवन पृथ्वीराज के साथ ऐसा मिला हुआ है कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता। चाहे युद्ध हो, आखेट हो, सभा हो अथवा यात्रा, वे सदा महाराज के साथ रहते थे। चंदबरदाई से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था, जहाँ जो बातें होती थीं, वे सब में सम्मिलित रहते थे। ऐसा जान पड़ता था कि वे दोनों दो जिस्म एक जान हैं।
गोरी वध…
यहाँ तक कि जब मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना कर गजनी ले गया तो वह स्वयं को वश में नहीं कर सके और उनके साथ गजनी चले गये। ऐसा माना जाता है कि कैद में बंद पृथ्वीराज को जब अन्धा कर दिया गया तो उन्हें इस अवस्था में देख कर इनका हृदय द्रवित हो गया, तब चंदबरदाई ने गोरी के वध की योजना बनायी। उक्त योजना के अंतर्गत उन्होंने सर्वप्रथम गोरी का हृदय जीता और फिर गोरी को यह बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चला सकते हैं। इससे प्रभावित होकर मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की इस कला को देखने की इच्छा प्रकट की। प्रदर्शन के दिन तय हुआ। चंदबरदाई गोरी के साथ ही मंच पर बैठे। अंधे पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया एवं उनसे अपनी कला का प्रदर्शन करने को कहा गया। जैसा कि पुर्वनियोजित था, पृथ्वीराज के द्वारा जैसे ही एक घण्टे के ऊपर बाण चलाया गया गोरी के मुँह से अकस्मात ही “वाह! वाह!!” शब्द निकल पड़ा बस फिर क्या था चंदबरदायी ने तत्काल एक दोहे में पृथ्वीराज को यह बता दिया कि गोरी कहाँ पर एवं कितनी ऊँचाई पर बैठा हुआ है। वह दोहा इस प्रकार था…
चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान॥
इस प्रकार चंदबरदाई की सहायता से पृथ्वीराज के द्वारा गोरी का वध कर दिया गया। गोरी वध के उपरांत दोनों मित्र दुश्मनों के हांथ आने से पूर्व ही स्वर्ग गमन की ओर प्रस्थान कर गए।
परिचय…
ब्रजभाषा हिन्दी के प्रथम महाकवि चंदबरदाई का जन्म संवत १२०५ तदनुसार ११४८ ई० में लाहौर में हुआ था। कालांतर में वे अजमेर-दिल्ली के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा, राजकवि और सहयोगी हो गए। इससे उनका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज चौहान के साथ दिल्ली में बीता। वे राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ ही रहते थे। चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ “पृथ्वीराजरासो” है। इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थान में ब्रजभाषा का पर्याय है। इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवि माना जाता है। ‘रासो’ की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है। इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है। अत: इसमें वीर और श्रृंगार दो ही रस है। चंदबरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है लेकिन शिलालेख प्रमाण से ये स्पष्ट होता है कि इस रचना को पूर्ण करने वाला कोई अज्ञात कवि है जो चंद और पृथ्वीराज के अन्तिम क्षण का वर्णन कर इस रचना को पूर्ण करता है।
हिन्दी के पहले कवि…
चंदबरदाई को हिंदी का पहला कवि और उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना होने का सम्मान प्राप्त है। पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है। इसमें १०,००० से अधिक छंद हैं और तत्कालीन प्रचलित ६ भाषाओं का प्रयोग किया गया है। इस ग्रंथ में उत्तर भारतीय क्षत्रिय समाज व उनकी परंपराओं के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है, इस कारण ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है।
काल…
पृथ्वीराज ने ११६५ से ११९२ तक अजमेर व दिल्ली पर राज किया। और चंदबरदाई पृथ्वीराज के मित्र तथा राजकवि थे। अतः इससे प्रमाणित होता है कि यही चंदबरदाई का रचनाकाल भी था।