एम. पतंजलि शास्त्री भारत के भूतपूर्व दूसरे मुख्य न्यायाधीश थे। वह सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे न्यायाधीश थे, जो ७ नवम्बर, १९५१ से ३ जनवरी, १९५४ तक इस पद पर रहे।
एम. पतंजलि शास्त्री मद्रास के पचैयप्पा कॉलेज के वरिष्ठ संस्कृत पंडित कृष्ण शास्त्री के पुत्र थे। उन्होंने बी. ए. में स्नातक किया और फिर मद्रास विश्वविद्यालय से एलएलबी कि डिग्री लेने के बाद एक वकील बन गए।
सन १९१४ में मद्रास उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में एम. पतंजलि शास्त्री ने अपना कैरियर शुरू किया। विशेषकर उन्होंने चेट्टियार ग्राहकों के साथ कर कानून में विशेष विशेषज्ञता के रूप में ख्याति प्राप्त की। सन १९२२ में उन्हें आयकर आयुक्त का स्थायी सलाहकार नियुक्त किया गया। उन्होंने १५ मार्च, १९३९ को खंडपीठ में अपने पद तक पहुंचने तक पद संभाला। इस दौरान एम. पतंजलि शास्त्री ने सर सिडनी वाड्सवर्थ के साथ मद्रास के कृषक ऋण मुक्ति अधिनियम के पारित होने के बाद कार्य किया।
६ दिसंबर, १९४७ को मद्रास उच्च न्यायालय में वरिष्ठता में तीसरे स्थान पर रहने के बाद उन्हें संघीय न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया, जो बाद में सर्वोच्च न्यायालय बन गया। मुख्य न्यायाधीश सर एच. जे. कनिया की अप्रत्याशित मौत के बाद ७ नवंबर, १९५१ को एम. पतंजलि शास्त्री को सबसे वरिष्ठ सहयोगी न्यायमूर्ति के रूप में नियुक्त किया गया। वह ३ जनवरी, १९५४ को सेवानिवृत्ति की आयु तक इस पद पर रहे।