एक समय ऐसा भी था, जब बंगाली समाज का कहना था की, ‘उड़िया एक स्वतंत्र भाषा नहीं, अपितु बांग्ला की एक उप भाषा है।’ मगर एक दिन ऐसा आया की उड़िया को एक स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। साथ ही यह भारत में भाषा आधारित उड़ीसा सर्वप्रथम प्रदेश बनकर उभरा, और ऐसा हुआ मधुबाबू की वजह से…
मधुबाबू का जन्म २८ अप्रैल, १८४८ को उड़ीसा के कटक जिले के सत्यभामापुर गांव के रघुनाथ दास चौधरी एवं पार्वती देवी के यहाँ हुआ था। अंग्रेजी शासन में पराधीन अंचलों में उड़िया भाषा का अस्तित्व जब संकट में था, उसी समय कुछ व्यक्तियों की निःस्वार्थ कोशिशों से उड़ीसा को स्वतंत्र रूप से अपना स्वरूप प्राप्त हुआ। अंग्रेजी शासन में बंगाल, बिहार, केन्द्र प्रदेश और मद्रास के भीतर खण्ड-विखण्डित होकर उड़ीसा टूटी-फूटी अवस्था में था। उड़िया लोगों को एकत्र करके एक स्वतंत्र प्रदेश निर्माण के लिये अनेक चिंतक, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक एवं देशभक्त व्यक्तियों ने बहुत प्रयत्न किये। उन महान व्यक्तियों में उत्कल गौरव मधुसूदन दास सबसे पहले व प्रमुख व्यक्ति थे। उड़िया माटी के ये सुपुत्र मधुबाबु जिनके प्रयासों से १ अप्रैल १९३६ को स्वतंत्र उड़ीसा प्रदेश गठित हुआ था। तब तक वे प्रदेश के गठन को देखने के लिए जीवित नहीं थे।
उड़िया भाषा की सुरक्षा एवं स्वतंत्र उड़ीसा प्रदेश गठन हेतु मधुबाबु ने ‘उत्कल सम्मिलनी’ की स्थापना की। इसमें खल्लिकोट राजा हरिहर मर्दराज, पारला महाराज कृष्णचंद्र गजपति, कर्मवीर गौरीशकर राय, कविवर राधानाथ राय, भक्तकवि मधुसूदन राव, पल्लीकवि नन्दकिशर बल, स्वभावकवि गंगाधर मेहेर और कई विशिष्ट व्यक्तिगणों का सक्रिय योगदान सतत स्मरणीय रहेगा। मधुबाबु ने उत्कल सम्मिलनी में योगदान दिये अपनी कविताओं से लोगों का आह्वान किया था। उस समय कुछ क्रांतिकारी बंगाली कहते थे, ‘उड़िया एक स्वतंत्र भाषा नहीं, बांग्ला की एक उप भाषा है’, परंतु मधुबाबु की सफल चेष्टा से उड़िया को एक स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। फलस्वरूप भारत में भाषा आधारित सर्वप्रथम प्रदेश के रूप में उड़ीसा उभर आयी।
१९०३ में मधुबाबु द्वारा प्रतिष्ठित उत्कल सम्मिलनी से उड़िया आंदोलन आगे बढा। उसी वर्ष वे कांग्रेस छोड़ कर उड़िया आंदोलन में स्वयं को नियोजित किया। मधुबाबु स्वाभिमान एवं आत्ममर्यादा को विशेष प्राधान्य देते थे। धन-सम्पत्ति भले ही नष्ट हो जाये, परवाह नहीं, परंतु आत्म-सम्मान सदा अक्षुण्ण बना रहे। मधुबाबु बहुत दयालु तथा दानवीर थे। उन्होंने अपनी कमाई तथा सम्पत्ति को पूरे का पूरा जनता की सेवा में लगा दिया था। यहां तक वे दिवालिया भी हो गये। वे पहले उड़िया नेता बने जिन्होंने विदेश यात्रा की और अंग्रेजों के सामने उड़ीसा का पक्ष रखा। मधुबाबु कलकत्ता से एम.ए. डिग्री और बी.एल. प्राप्त करने वाले प्रथम उड़िया हैं। वे विधान परिषद के भी प्रथम उड़िया सदस्य हैं। वे अपनी वकालत के कारण उड़ीसा में ‘मधु बारिष्टर’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
अपनी देशभक्ति, सच्चे नीति, संपन्न नेतृत्व एवं स्वाभिमानी मर्यादा सम्पन्न गुणों के कारण बारिष्टर श्री मधुसूदन दास सदैव स्मरणीय रहेंगे। कटक स्थित मधुसूदन आइन महाविद्यालय उनके नाम से नामित है। उनकी जन्मतिथि २८ अप्रैल को उड़ीसा में ‘वकील दिवस’ और ‘स्वाभिमान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
Bahut khup
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