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जब कभी किसी ने पूछा हो, क्या तुमने कभी ईश्वर को देखा है? प्रत्यक्षतः तो हम ना में सर को हिलाते हैं, मगर हमारे अन्तर्मन में कई सारे चित्र उभर आते हैं, जैसे शिवजी, लक्ष्मी जी, राम-कृष्ण आदि देवी देवताओं के चित्र। और आश्चर्य की बात यह देखिए की हम सभी के अन्तर्मन के देवी देवताओ की छवि तकरीबन एक समान ही होती है। कमल पुष्प पर आसीन माँ लक्ष्मी, वीणा थामे माँ सरस्वती, चतुर्भुजी भगवान विष्णु आदि खुबसूरत चित्र। मगर कभी आपने यह सोचा है की ईश्वर की इतनी खुबसूरत छवि हमारे अन्तर्मन मे आई कैसे ??? जरा सोचिए… नहीं, तो मै आपकी मदद करता हूँ…

सन् १८४८ में भारत मे एक विख्यात चित्रकार हुए थे। उन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का ऐसा जीवित चित्रण किया था, मानो साक्षात वे हमारे सम्मुख खड़े हों। उनके चित्रों में सबसे बड़ी विशेषता यह थी की हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों पर आधारित होती थी। वैसे तो उनके बनाए गए चित्र हम सभी के घरों में अमूमन मिल ही जाएंगे, जो एक, दो, पाँच से लेकर सौ, दो सौ रुपए में हर चौक चौराहे पर बिकते हैं। अगर आपको उन प्रतिलिपियों की मूल संग्रह को देखना हो तो, हो आईए वडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मीविलास महल में। इस संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह आज भी वहाँ आपको मिल जाएगा। अब तक आपकी उत्सुकता अवश्य बढ़ी होगी यह जानने की कि यह महान विभूति, यह महान चित्रकार कौन है, तो आईए हम उनका परिचय आपसे कराते हैं…

ये महान चित्रकार राजा रवि वर्मा जी हैं, जिनका जन्म २९ अप्रैल, १८४८ को केरल के एक छोटे से शहर किलिमानूर में हुआ था। पाँच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया था। यह देख उनके चाचा और उस समय के महान कलाकार राज राजा वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारम्भिक शिक्षा देनी शुरू कर दी। चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें तिरुवनंतपुरम ले गये जहाँ राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा प्रारंभ हुई। कालांतर में चित्रकला के विभिन्न आयामों की दक्षता के लिये उन्होंने मैसूर, बड़ौदा और देश के अन्य भागों की यात्रा की। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनके चाचा राज राजा वर्मा के सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जाता है। राजा रवि वर्मा ने पहले पारम्परिक तंजौर कला में महारत प्राप्त की और फिर यूरोपीय कला का भी अध्ययन किया।

संपूर्ण विश्व के महानतम विद्वानो ने उनके कलाकृतियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा है…

(१) प्रतिकृति अथवा पोर्ट्रेट,
(२) मानवीय आकृतियों वाले चित्र तथा
(३) इतिहास व पुराण की घटनाओं से सम्बन्धित चित्र।

यद्यपि जनसाधारण में राजा रवि वर्मा की लोकप्रियता इतिहास पुराण व देवी देवताओं के चित्रों के कारण हुई लेकिन तैल माध्यम में बनी अपनी प्रतिकृतियों के कारण वे विश्व में सर्वोत्कृष्ट चित्रकार के रूप में जाने गये। आज तक तैलरंगों में उनकी जैसी सजीव प्रतिकृतियाँ बनाने वाला कलाकार दूसरा नहीं हुआ।

प्रमुख कृतियाँ…

खेड्यातिल कुमारी, विचारमग्न युवती, दमयंती-हंसा संभाषण, संगीत सभा, अर्जुन व सुभद्रा, फल लेने जा रही स्त्री, विरहव्याकुल युवती, तंतुवाद्यवादक स्त्री, शकुन्तला, कृष्णशिष्टाई, रावण द्वारा रामभक्त जटायु का वध, इंद्रजित-विजय, भिखारी कुटुंब, स्त्री तंतुवाद्य वाजवताना, स्त्री देवळात दान देतांना, राम की वरुण-विजय, नायर जाति की स्त्री, प्रणयरत जोडे, द्रौपदी किचक-भेटीस घाबरत असतारना, शंतनु व मत्स्यगंधा, शकुंतला राजा दुष्यंतास प्रेम-पत्र लिहीताना, कण्व ऋषि के आश्रम की ऋषिकन्या, अष्टसिद्धि, लक्ष्मी, सरस्वती, भीष्म प्रतिज्ञा, कृष्ण को सजाती हुई यशोदा, राधामाधव, अर्जुन व सुभद्रा, गंगावतरण, शकुंतला, दुःखी शकुंतला, द्रौपदी, द्रौपदी का सत्वहरण, सैरंध्री आदि।

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