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आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे लेखक के बारे में जिन्होंने आजीवन स्वतंत्र लेखन किया, जिनकी पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं और सभी अत्यंत मशहूर हुईं। वे कथा, उपन्यास, नाटक और पटकथा लेखक थे। उनके बारे में एक बार फ़ादर कामिल बुल्के ने कहा था…

“रॉबिन शॉ उन गिने-चुने इसाइयों में हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य के संसार में भरपूर नाम कमाया। नि:संदेह श्री पुष्प आज हिन्दी के एक प्रतिष्ठित कथाकार हैं-नुकीले अनुभव, खंडों के कुशल शब्द शिल्पी, संवेदनाओं की जटिल ग्रंथियों के अनूठे कथाकार।”

परिचय…

रॉबिन शॉ पुष्प का जन्म बिहार के मुंगेर में २० दिसंबर, १९३६ को हुआ था। उनकी पहली कहानी धर्मयुग में छपी थी। रेडियो और टीवी के लिए भी उन्होंने कई नाटक, कहानियां लिखी थीं। उनकी कहानियों पर बनी टीवी फिल्में रांची, मुजफ्फरपुर, रायपुर और दिल्ली दूरदर्शन पर कई बार प्रसारित हो चुकी हैं। पटना से प्रकाशित फिल्म पत्रिका ‘चित्र साधना’ और ‘महादेश’ से भी वह लंबे अरसे तक जुड़े रहे थे। उनकी कहानियां उर्दू, बांग्ला, पंजाबी, मलयालम, गुजराती, मराठी और मैथिली में भी अनुवादित हुई हैं। रेडियो पर प्रसारित उनका लिखा नाटक ‘दर्द का सुख’ तो आज भी लोकप्रिय है।

साहित्यिक परिचय…

अपनी साहित्यिक जीवन की शुरुआत उन्होंने धर्मयुग पत्रिका से की थी। उसके बाद उनकी कई कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। श्री शॉ ने बिहार के गांव कस्बों पर भी कहानियां लिखीं हैं। उनकी कई अनूदित रचनाएं आई हैं। रॉबिन शॉ पुष्प की आत्म संस्मरणात्मक रचना यात्रा “एक वेश्या नगर” को पाठकों ने खूब सराहा। उन्होंने कई डॉक्यूमेंटरी फिल्में भी बनाईं और कुछ फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखीं। इसी वर्ष उनके संपूर्ण रचनाकर्म को समेटती सात खंडों में रॉबिन शॉ पुष्प रचनावली प्रकाशित हुई थी। उनकी कहानियों के अंग्रेजी के अलावा तमाम भारतीय भाषाओं में अनुवाद छपे और सराहे गये। उनकी पत्नी गीता शॉ पुष्प भी प्रख्यात लेखिका हैं।

निधन…

अस्सी वर्ष की आयु में रॉबिन शॉ का ३० अक्टूबर, २०१४ को दोपहर तकरीबन २ बजे पटना स्थित अपने आवास पर निधन हो गया। उन्होंने एक बार कहा था…

“आज सोचता हूँ, ज़िंदगी को किसी ने डॉक्टर ने नुस्खे की तरह नहीं लिखा, कि सुबह यह, दोपहर यह, रात में यह। यह तो आसमान में, बहुत ऊँचाई तक उड़नेवाली चिड़ियाँ जैसी है… या पानी के भीतर, बहुत भीतर तक तैरती हुई कोई मछली… ज़िंदगी की ऊँचाई या गहराई को नापना इतना आसान नहीं।”

कुछ प्रमुख कृतियाँ…

(क) उपन्यास :

१. अन्याय को क्षमा
२. बंद कमरे का सफर
३. देहयात्रा
४. जागी आंखों का सपना
५. खुशबू बहुत है
६. दुल्हन बाज़ार
७. गवाह बेगमसराय

(ख) कहानी संग्रह :

१. दस प्रतिनिधि कहानियां
२. अंधे आकाश का सूरज
३. नंगी खिड़कियों का घर
४. अजनबी होता हुआ मकान
५. आखिरी सांस का किराया
६. अग्निकुंड

जब उनकी रचनाओं की चर्चा चल निकली तो, गोपाल दास नीरज की कही वह बात याद आ गई, “रॉबिन शॉ पुष्प की कहानियां मैने हिन्दी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में पढ़ी हैं और उनमें देर तक डूबा रहा हूं। उनमें कलात्मक निपुणता के साथ मर्म पर चोट करने की क्षमता है। पात्रों के मानसिक द्वंद्वों का उद्घाटन करने में माहिर हैं। मैं उनसे मिलने उनके घर मुंगेर गया था। वह जिस शालीनता से मेहमानों का सत्कार करते हैं, उसी शालीनता से लिखते भी हैं।”

सम्मान…

१. वर्ष १९६५ में उदीयमान साहित्यिक पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, बिहार सरकार
२. वर्ष १९८० में कला एवं साहित्यिक सेवा के लिए विशेष सम्मान, मंथन कला परिषद्, खगौल
३. वर्ष १९७६ में हिंदी सेवा तथा श्रेष्ठ साहित्यिक सृजन के लिए सारस्वत सम्मान
४. वर्ष १९८७ में शिव पूजन सहाय पुरस्कार, राजभाषा विभाग, बिहार सरकार
५. वर्ष १९९४ में विशेष साहित्य सेवी सम्मान पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, बिहार सरकार
६. वर्ष १९९४ में बिहार के साहित्यकारों की कृतियों को सम्म्पादित एवं प्रकाशित करने की दिशा में किये गए कार्यों के लिए ह्यमुरली सम्मान, शब्दांजलि, पटना
७. वर्ष १९९४ में हिंदी कथा-साहित्य की संमृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए राजभाषा विभाग, बिहार सरकार द्वारा फणीश्वर नाथ रेणु पुरस्कार
८. वर्ष २००२ में मसीही हिंदी साहित्य-रतन-सम्मान से काथलिक हिंदी साहित्य समिति (भारत के काथलिक की हिंदी समिति) द्वारा इलाहाबाद में

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