October 9, 2024

एकांकी की अगर हम बात करें तो, इसे हम तीन युगों में बांट सकते हैं, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग और आधुनिक युग। वैसे तो हम आधुनिक युग को जयशंकर प्रसाद जी का युग भी कह सकते हैं। आधुनिक युग के प्रमुख स्तंभ की अगर बात की जाए तो, डॉ॰ रामकुमार वर्मा, लक्ष्मीनारायण लाल, उदयशंकर भट्ट, तथा उपेन्द्र नाथ अश्क प्रमुख एकांकीकारों में गिने जाते हैं। परन्तु पंडित लक्ष्मीनारायण मिश्र जी का स्वर इन सबसे अलग है। हिन्दी के एकांकीकारों में उनका स्थान विशेष है।

परिचय…

पंडित लक्ष्मीनारायण मिश्र का जन्म उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के बस्ती क्षेेत्र में हुआ था। उन्होंने वर्ष १९२८ में अपनी बी.ए. की परीक्षा ‘केंद्रीय हिन्दू कॉलेज’, काशी से उत्तीर्ण की थी।

साहित्य…

१८ वर्ष की अवस्था से ही लक्ष्मी नारायण मिश्र जी का झुकाव साहित्य सृजन की ओर हुआ। उनकी वर्ष १९२१·२२ में प्रकाशित ‘अंतर्जगत्’ नामक काव्य रचना उसी समय की है। इसके उपरांत ही उनकी नाटकीय प्रतिभा का उदय प्रारम्भ हुआ और ‘अशोक’ उनका पहला नाटक था।

नाट्य साहित्य : इनके समस्त नाट्य साहित्य के दो वर्ग में बांट कर हम देख सकते हैं।

१. सांस्कृतिक अथवा ऐतिहासिक
२. सामाजिक

आधारभूत सत्य की दृष्टि से लक्ष्मीनारायण मिश्र के समूचे नाट्य-साहित्य में भारतीय संस्कृति के आदर्शों और मान्यताओं का प्रभाव है। सब नाटकों की शिल्पविधि और रूपगठन आधुनिक (पाश्चात्य) है, पर नाटक अपनी आंतरिक प्रकृति में प्राय: भारतीय हैं; किंतु उस अर्थ में प्राचीन भारतीय और पाश्चात्य नाट्य-तत्त्वों का समंवय नहीं, जैसा कि जयशंकर प्रसाद के नाटकों में है। दूसरे ही स्तर पर मिश्रजी के नाटक अपने बहिरंग में आधुनिक पाश्चात्य नाट्य-शिल्प के अनुरूप हैं और आंतरिकता में विशुद्ध भारतीय हैं। यह सत्य वस्तुत: दृष्टिकोण और भावधारा के स्तर पर प्रतिष्ठित है। जहाँ एक शिल्प गठन का प्रश्न है, आपके नाटकों का विकास और निर्माण गीतों, स्वगत कथनों और भावुकतापूर्ण कवित्व वर्णनों के माध्यम से न होकर, बिल्कुल नये ढंग से होता है। ऐतिहासिक नाटकों में निश्चय ही तात्त्विक विवेचनों और सैद्धांतिक विचार विनिमय के गहन तत्त्व हैं। मिश्र जी ने इब्सन के दो प्रसिद्ध नाटक ‘पिलर ऑफ़ द सोसाइटी’ और ‘डाल्स हाउस’ का अनुवाद क्रमश: ‘समाज के स्तम्भ’ और ‘गुड़िया का घर’ नाम से किया है।

कृतियाँ…

मिश्र जी लगभग २५ नाटकों और १०० एकांकियो का सृजन किया है। अशोक वन, प्रलय के मंच पर, कावेरी में कमल, बलहीन, नारी का रंग, स्वर्ग से विप्लव, भगवान मनु आदि उनके प्रख्यात एकांकी संग्रह हैं। उन पर पाश्चात्य नाटककार इन्सन, शा, मैटरलिंक आदि का खासा प्रभाव था। लेकिन फिर भी उनके एकांकियों में भारत की आत्मा बसती थी।

(क) नाटक :

१. अशोक (१९२६)
२. संन्यासी (१९३०)
३. राक्षस का मन्दिर (१९३१)
४. मुक्तिका रहस्य (१९३२)
५. राजयोग और सिन्दूर की होली (१९३३)
६. आधी रात (१९३६)
७. गरुड़ध्वज (१९४५)
८. नारद की वीणा (१९४६)
९. वत्सराज और दशाश्वमेध (१९५०)
१०. वितस्ता की लहरें (१९५३)
११. चक्रव्युह (१९५५)
१२. समाज के स्तम्भ
१३. गुड़िया का घर

(ख) अन्य रचनाएँ :

१. अन्तर्जगत् (कविता संग्रह,१९२४)
२. अशोक वन (एकांकी संग्रह,१९५०)

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